Friday, 2 March 2012

बस तुम नहीं...




आजकल ये  सांसें  भी  तनहा  चलती  है
जैसे  तेरे  बिना  आज  भी  दुनिया चलती  है ,
आज  सब  कुछ  है  इस  जहां  में
मेरे  पास  बस  तुम  नहीं
...


सूखी -सूखी रेतों पे, गीले  लकीरों  से  लिखें
वो  शाम  तेरा नाम  ढूँढती हैं !

लहरों  को  निहारु ,तेरा  मुकाम  ढूँढू .
यादो  में  वक़्त  गुजारु ,तेरा  आराम ढूँढू .....



" काश !  मुमकिन  होता  खोकर  फिर  से  किसी  को  पाना ..

काश ! मुमकिन  होता  दूर  जाकर  भी  किसी  का  लौट  आना .. "




आजकल  ये  यादें  भी  मुझे  मुझसे  फ़ना  करती  है ..
जैसे  तेरे  बिना  आज  भी  दुनिया चलती  है ,
आज  सब  कुछ  है  इस  जहां  में
मेरे  पास  बस  तुम  नहीं.........



सूखे - सूखे फूलों पे,बारिशों से लिखे
उस मोसुम में,ओस के निशान ढूँढती हैं... 



छूकर  वीरान  ज़मी  को ,में तेरा आसमा  ढूँढू
 फिर  आँखों  की  नमी  से ,में  वो  मेहेरबा  ढूँढू,

आजकल  ये  शाम  भी  अध्-मुधी सी  ढलती  है
जैसे  तेरे  बिना  आज  भी  ये  दुनिया  चलती  है..
 



आज  सब  कुछ  है  इस  जहां  में
मेरे  पास  बस  तुम  नहीं..... !!!!





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बदसुलूकी