Friday, 23 March 2012

ये फ़ासलें............


मेरे खुश होने पे ,क्या वो भी मुस्कुराता होगा?
 मेरे न मिलने पे ,उसका मन घबराता होगा ?
मुझे तो पता ही नहीं चला.. मैं कब उसकी बन गयी
क्या कभी उसको भी मेरा ख्याल आता होगा?

मेरे बिन,भी मुझे हर कहीं पाता होगा..?
अक्स मेरा उसे रात दिन सताता होगा..?
मुझे तो पता ही नहीं चला..मैं कब उसकी बन गयी
क्या कभी उसको भी मेरा ख्याल आता होगा?

" सुबह के बाद फिर शाम हो जाती हैं..
   रातें ओझल फिर तमाम हो जाती हैं..
   ये फ़ासलें जरा ठहरने को कहते हैं और
 मिलने की कोशिशे तभी नाकाम हो जाती हैं.."



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बदसुलूकी