Wednesday, 7 March 2012

ये कैसा रंग है .... मोहब्बत का ?



अनकहा सा कोई वो सवाल है
मेरे गालो को छूता वो गुलाल हैं.. 
जिंदगी में रंगों का मेरे खजाना है ये 
न फूल,न तितलियों की छुअन का नजराना है ये,

न कुदरत,न जन्नत का बक्शा कोई नजराना है ये..
इन आँखों में रंगों का पर्दा है ?
या ये दुनिया नयी है !!
लाखों की भीड़ में भी
 मुझे दीखता वही है !! 
सादगी की अहेमियत हर कोई,समझता नहीं..
और किसी श्रृंगार से ये रूप सवारता ही नहीं..
 ये कैसा रंग चढ़ा है मोहब्बत का 
जो उतरता ही नहीं ...

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बदसुलूकी