Saturday, 31 March 2012

तन्हाई का दर्पण ....


"अब उसकी तरह में भी उससे
शरारतें करती हूँ,

कभी छुपता ,
तो कभी साया बनके छू जाता है वो ....
मैं भी उससे अब नज़रें चुराया करती हूँ......"

रोशन हैं सवेरा, धूप खिल सी गयी हैं
उसके साथ जीने की जैसे अब आदत सी हो गयी हैं..

वो मेरी तन्हाई का दर्पण है,
जिसकी मैं रूह तक से रूबरू हूँ..

"अब उसकी तरह में भी उससे
शरारतें करती हूँ,
कभी छुपता ,
तो कभी साया बनके छू जाता है वो ....
मैं भी उससे अब नज़रें चुराया करती हूँ......"


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