Thursday, 15 March 2012

वो परछाई ,किसकी थी ?


मेरी कहानी में,क्या हैं ?ये बताने का मन नहीं ..
हर एक कदम मुश्किल है, साथ मेरे जीवन नहीं
वो एक रहस्य है, जिसे में सुलझाना  चाहती हूँ
जिसका अक्स है ,यही कही में उसे छूना चाहती हूँ
क्यों वो गुमनाम बना रहता हैं?

क्यूँ मेरी परछाई में उसका साया सा रहता हैं
कभी उससे डर लगता हैं 
कभी वो खुशियों का नगर लगता हैं
ठण्ड में सुबह की लाली चेहरे में पड़ती है
फिर उसकी यादों का करवा बढ़ता हैं
सदियों की नहीं,कुछ सालों की बातें हैं
जिनसे रूबरू होके ,फिर.. दिल भरता हैं ..

फासलों से भी क्या कोई इतना करीब रहता हैं ?
शाम को इतनी सारी यादों के साथ,उफ़ !  अब रहना अजीब लगता है !
भूल गयी अब में वो बातें किसकी थी ?
साथ- साथ जो चलती रही हमेशा, वो परछाई ,वो तन्हाई किसकी थी ?
बाहें  फैलाकर  कभी ,खुलकर जीने का मन करता हैं..
खुद ही मुस्कुरा के आज ,सुने अपनी आवाज मन करता हैं,
मुझे नहीं पता किसी का साथ होना कैसा लगता हैं?
मेरी दुनिया में  मेरे ही ख्यालों का ,जैसे मेला लगता है,
ये फासलें एक अजनबी से हैं
जिसका मुकम्मल,रास्ता मैं नहीं जानती
मेरी राह मैं एक दिन मुझसे वो जरूर टकराएगा,इसका यकी हैं..





No comments:

Post a Comment

बदसुलूकी