Wednesday, 2 May 2012

ख़ामोशी की चीख ..


आज मैंने, मेरे ख्वाबों की दुनिया से निकल के देखा..
हसी की किलकारी गूंजी ,सोचा खुल के जियूंगी आज हर लम्हा..
मुझे थी शिकायत की " मेरे साथ क्यों अच्छा नहीं होता.. "?

हर तरह के लोग बसते हैं इस नगर में,

जिन्हें काम के शिवा,किसी की परवाह नहीं,
वो नन्हे फूल जिन्हें पैरो तले ,जिंदगी ने कुचल कर जीना सीखा दिया हैं..
... बेजुबा बने ,वो बुजुर्ग जिनका दर्द कोई नहीं सुनता,
खुद उनके अपने भी नहीं ?
उन औरतों के आँखों के आसूं अब नहीं थमे,
पर वो अपनी पीड़ा किससे कहे ?
घर से लडकियां निकलने से डरती है
क्यूँ इतना खौफ हैं..?
क्यों इतना मौन हैं..?
हर आँखों में एक शिकंज थी ..
उनकी खामोशियों की चीख़े मैंने सुनी,
शेहेर के शोर में कुछ दब सी गयी हैं,उनकी आवाजे कहीं..

ये नजारा ताकते हुए मैंने सोचा..

" थी अकेली पर पिंजरे की बाहों में मेहफूस तो थी
आज पता चला दुनिया कितनी बड़ी हैं,
कई अनजाने रास्ते हैं
कई कठिन मोड़ हैं
और साथ ..........................साथ कोई नहीं..!!!!! "



 

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बदसुलूकी