तनहा बैठकर ..... मैं, एक बात हूँ सोचती
क्यों न कर लूं , इन फासलों से दोस्ती..
इन्ही के साथ रहना है
इन्ही के साथ चलना हैं..
ये फासलें वो फासलें है
जिनका कोई हल न हैं ...
"गम की शाम का ,कभी सवेरा नहीं होता
फासलों की सुबह का ,कभी अँधेरा नहीं होता.. "
नींद में उठकर . . . . बार बार हूँ सोचती
क्यों न कर लूं , इन फासलों से दोस्ती..
इन फासलों से दोस्ती.. . . . . !


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