Monday, 28 May 2012

ये फासलें..सरहद नहीं !


सतरंगी श्रृंगार किये, कई कहानियां आस-पास है,
सादगी में लिपटी ,यूँ ही कुदरत नहीं होती...
ख्वाबों के झिलमिलाते तारे भी यहाँ से दिखते हैं,
इस जमी से बेहतर ..दूसरी कोई, जन्नत नहीं होती..!

माना फासलों ने कुछ सीमाएं खींच दी हैं,

करीब आने के लिए, मुलाकातों की जरूरत नहीं होती
जिन्हें मिलना है... वो मिल के ही रहते हैं,
खुले आसमा की.... कोई सरहद नहीं होती... !


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बदसुलूकी