ख्वाब के जैसा,मैंने कभी जहान ना पाया..
सुकून एक पल को,न इस दिल नादान को आया,
वक़्त को ठहरा दे,कायानात को बदल डाले ..
बनके दिल के जेहेन में, कभी "वो "अरमान ना आया
ख्वाब के जैसा,मैंने कभी जहान ना पाया..
सैलाब था गम का,नज़र में जिसे कोई जान ना पाया..
किस तरह ले लेते शर-ए-बाज़ार नाम उसका,
जिस शख्स को मेरी कविता में कोई पहचान न पाया..


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