कभी कसमों तो कभी वादों से डर लगता हैं
निहार के आस्मा की ऊचाईयों को..छूने का दिल करता हैं !
हैं तमन्ना वो खुद ही एक दफा पहेल करे..
कभी ख्यालों,तो कभी अनकहीं उलझनों से डर लगता है !
कैसे रफ़्तार है पल की ,क्यों अब ये थम जाता नहीं ....
कभी जुदाई तो कभी इस तनहाइयों से डर लगता है..
क्या जाने क्या है.. इन मौसमों की सजा
कभी हवाओ तो कभी परछाइयों से डर लगता हैं..
ख्वाब देखने का हुनुर इस आँखों से जाता नहीं
कभी नादानियों तो कभी कहानियो से डर लगता है..


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