Friday, 23 September 2016

नाज़

Poetry :166*


बहुत साज़िशें करता है
मेरे ख्वाब बसाने वाला
इन्तहा की घडी गिनता है
मुझे इंतज़ार करवाने वाला
नज़रें अब उनकी,शुक्रगुज़ार क्यों न हो,
मेरे हर नाज़ उठाता है
कभी ना सर झुकाने वाला


Thursday, 1 September 2016

बेरुखी........



 Post; 165*


मोहब्बत में बेरुखी अपनाना,अलग बात है 
नहीं करती शिकायत, ये अलग बात है...
नाराज़गी में मुस्कुराना,अलग बात है
हु खुद से खफा,ये अलग बात है...
यादो को भुलाना, अलग बात है
उसे कुछ याद नहीं ,ये अलग बात है...
मौसम का बदलना, अलग बात है
तुझे कदर नहीं,ये अलग बात है...
चोट खाकर संभालना, अलग बात है
रोज नज़रों से गिरना,ये अलग बात है...



Tuesday, 2 August 2016

उसकी मुहब्बत...1



<Post: 164* >



यकीं है मुझे उसकी हर कही-अनकही पर
फिर भी एक इंतज़ार सा रहता है ,
"उसकी मुहब्बत जाहिर करने का"



दीवानगी










<Post: 163*>

खफा नहीं जब ,तो ये नाराज़गी क्यों है
खूबसूरत सी दिखती, ये सादगी क्यों है
कैसा है ये जश्न के धड़कने शोर मचा रही है...
इश्क़ नहीं जब, तो ये दीवानगी क्यों है




Saturday, 23 April 2016

शुक्रगुज़ार...


Post: 162*

शुक्रगुज़ार हूँ उन सबकी 
जिन्होंने मुझे छोड़ दिया...
हैरत तो मुझे उससे मिलके है
कौन कहता है टूटे दिल से
कोई प्यार नहीं करता

Monday, 4 April 2016

तूने ज़िन्दगी


Post: 161*
गिर के जो संभले 
तो फिर न गिरना सीखा
बहुत कुछ सिखाया
तूने ए ज़िन्दगी

अपने जो बदले
खुद का हमसफ़र बनना सीखा
बहुत साथ निभाया
तूने ए ज़िन्दगी

साथ नहीं मिले
तो तनहा ही चलना सीखा
बहुत हौसला बढ़ाया
तूने ए ज़िन्दगी

हल नहीं मिले
तो मुश्किलों को लगे लगाना सीखा
बहुत कुछ समझाया
तूने ए ज़िन्दगी

मीट जायेंगे गिले
जिसने तूफा से आगे बढ़ना सीखा
बहुत कुछ बताया
तूने ए ज़िन्दगी



Saturday, 13 February 2016

अधूरा अरमान..


Post:160*

उसे मेरे बिना जीने की
शायद आदत हो गयी होगी
लेकिन उसके साथ
जीने का मेरा एक अरमान..
आज भी अधूरा है


Sunday, 31 January 2016

मेरा वक़्त..













Post :159*

खुदा की रेहमत होगी
बहुत वक़्त होगा तेरे पास
ढूंढ़ता फिरेगा निशा
सरे जहाँ ,सरे अस्मा पर .
वक़्त तब मेरे लहजे से चलेगा
जब मैं नहीं होउंगी


Friday, 29 January 2016

लोट आएगा कल

Post:158

सँवारेगी जमी 
थम जाएगा पल
जिसकी है कमी
लोट आएगा वो कल
भीगे भीगे मौसम में
जलता है चिलमन
तीखे तीखे सवालो में
उलझी है धड़कन
ठहरेंगी नमी
रंग लाएगा पल
नज़रें है थमी
लोट आएगा वो कल


Monday, 11 January 2016

नसीब-ए-जन्नत

Post:157*














उजड़ रहे है ख्वाब मेरे ,किस साथी का साथ चुनु ,
इन राहो में है आहें ,खुद को ओर कितना तनहा करू
मेहरबाँ हो जो खुदा तो नसीब-ए-जन्नत कर दे,
कब तक इन बेवफाओ की बस्ती में,मैं खुद को फना करू



Pari Tales


Tuesday, 5 January 2016

ये फ़ासलें...2



शक ने करवट ले ली थी,
गलतफेमियां सर चढ़ी थी
बेपाक हूँ
नादानी करती हूँ
पसंद हो या न पसंद
मनमानी करती हूँ
मेरे इस रुतवे को
उसने बेइंतेहा कबूल किया
ये उसका बड़प्पन था,
कीमत क्या बताऊ उस लम्हे की
उसमें गुजरा जैसे बचपन था .
 सीखा जब  खफा होना
 लाजमी था जुदा होना
जिंदगी जैसे ढेर हो चुकी थी
आते क्या जब देर हो चुकी थी
भीगे है ख्वाब ,पलकों में सबर नहीं
इस और बड़ी तड़प है,उस और की खबर नहीं
वो नहीं है तो ,मैं भी नहीं हूँ
हूँ यहाँ मैं, यहाँ भी नहीं हूँ

राहें जिससे बार बार मिल जाती थी
लौट के कभी मुझ तक मुड़ जाती थी
वीरानो में
खुद को  होते  जा  रहे है
फैसलों से भी
बड़े फ़ासलें होते जा रहे है


वो हैं अडिग  ,
ओर मैं  हठी हूँ
काश ये "अहम " रिश्तों में एहम नहीं होता 



Friday, 1 January 2016

तुम भी जा रहे हो अब


सच  ही  कहा  है  किसी  ने ..
नहीं  यहाँ  किसी  का  ठिकाना

तुम  भी जा  रहे  हो  अब
करके  नया  एक  बहाना...

चाहा  उन्हें  शामो शेहेर
भूल  गए हम मुस्कुराना ..

तुम  भी जा  रहे  हो  अब
करके  नया  एक  बहाना...

तुम  भी जा  रहे  हो  अब
करके  नया  एक  बहाना...



अनकही उलझन... 1



अब रातें  बहुत  बड़ी  लगती है   , उसने  आज  मुझसे  मेरी  पिछली  ज़िन्दगी  के  बारे  में  सवाल  किया ,कैसे  कहू  क्या  बताऊ  उसे ?किसी से कहने से भी क्या फायेदा जब वो इंसान आपकी भावनाए ही ना समझता हो,बहुत कम मिलते है ऐसे जो बिना कहे ही अंदाज़ा लगा लेते है...और कुछ ऐसे भी है कहने पर भी नहीं समझते.

मैं  उसे  क्या  किसी  को  भी  सच  बताने  से  कतरा  सी  जाती  हूँ , जब  कोई  कर  बैठता  है  मुझसे  ये  मुश्किल  सवाल ..
बहुत  मुश्किल  हो  जाता  है  जवाब  देना.
मैं  उसे  क्या  किसी  को  भी  सच  बताने  से  कतरा  सी  जाती  हूँ , जब  कोई  कर  बैठता  है  मुझसे  ये  मुश्किल  सवाल ..
बहुत  मुश्किल  हो  जाता  है  जवाब  देना.
आजकल  तो  और  भी उलझाने जुड़ गयी है, हाँ, वही  अनकही  सी उलझाने जिन्हें  कहना  चाहकर भी नहीं कहना चाहती
 
 
आज आँखों में नींद ने दस्तक भी नहीं दी है,बस यादों ने खुली आँखों से ख्वाब बुनने शुरू  कर दिए है.
बहुत उत्साहित थी मैं ,ये सोचकर की अपनी ज़िन्दगी का आज हर एक राज़ खोल दूंगी..फिर मन में कोई बोझ लेके जीना नहीं होगा..
 


शायद  वो  सवाल  इतना  भी  मुश्किल  नहीं  है ,मुश्किल  मैंने  अपने  लिए  खुद  बना  ली  है
ज़िन्दगी  बिखरे  पत्तों   की   तरह  जुदा  होती  जा  रही  है  ..


 आज का पता नहीं कुछ , मेरे कल में सिर्फ वो था.. 
वो कहता है जिंदगी सबको एक मौका देती है,पर तुम्हे जिंदगी को मौका देना है ,वो तुम्हे नहीं दे सकती.इतना कहकर वो जाने लगा ,मैं चुप चाप बस उसे देखती रह गयी..कुछ समझ नहीं आया के उससे मैं क्या कहूँ?"मैं उसे ये भी यकीन नहीं दिला सकती की हाँ यह मुमकिन है !!! तुम रुक जाओ.

"जिसे रुकना होता है ,वो बिना कहे ही रुक जाता है..क्या पता उसका साथ मेरी जिंदगी में यही तक था? मैं अकेली हूँ ,ये फिर से बाताने के  लिए "शुक्रिया" , मुझे इस तरह ही जीने ही आदत-सी हो गयी है..

वो अपनी डायरी  से अपने दिन भर का हाल बता रही है....

उसकी माँ उसके रूम की रोशनी देखकर वहा आ गयी और कहा ,"रात को क्या कहानी लिखने बैठ गयी है ?चल सो जा..अब "

 वो जितना सोचती है, जिंदगी उसे उतनी  ही उलझनों में डाल देती है. 
वो  पूरी रात बस यही सोचती रही की "  वो क्यों ?और कहाँ ? चला गया?"


जिंदगी की कसमकस में जहाँ ,वो उलझी हुई थी,वहा वो फिर वापस आ गया और कहने लगा,"तुम्हे क्या लगा ?मैं भी औरों की तरह  इतनी जल्दी चला जाऊंगा,तुम ही बस अपने फैसले में अडिग रह सकती हो  ?"पता है तुम  जहाँ  हो,वहां से निकलना जरा मुश्किल है ,पर कोई बताएगा नामुमकिन क्या है इस दुनिया में??"




"कोई ठेहेरता  नहीं किसी के लिए...
वक़्त रुकता नहीं किसी के  लिए ,
फिर क्यूँ मैं  तुम्हारे लिए थम सी गयी हूँ.... !!!!!!!


Pari'S World : http://meriduniamepyarnahihota.blogspot.in

BuZZ...



Hi Friends,


This owner of this Blog :) hehe :) I want to inform you that now u can see new cum old TALES of my life,which I m going to share here from another blog of mine.


Thanks & Keep liking

मेरी ओर



एक दौर था
जब करवा मेरी ओर था
आज न मैं वो हूँ
न याद है की वो कौन था

बदली सी हुई, मौसम में,
और जिंदगी बदल गयी
मंज़िल तक आते आते,
लकीर हाथ से फिसल गयी

परछाई भी परायी लगती है
तारीफ भी रुस्वाई लगती है

खामोश थी मैं
जाने क्यों वहां शोर था
आज न मैं वो हूँ
न याद है की वो कौन था


बदसुलूकी