Pari Tales
Monday, 11 January 2016
नसीब-ए-जन्नत
Post:157*
उजड़ रहे है ख्वाब मेरे ,किस साथी का साथ चुनु ,
इन राहो में है आहें ,खुद को ओर कितना तनहा करू
मेहरबाँ हो जो खुदा तो नसीब-ए-जन्नत कर दे,
कब तक इन बेवफाओ की बस्ती में,मैं खुद को फना करू
Pari Tales
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बदसुलूकी
तुम भी जा रहे हो अब
सच ही कहा है किसी ने .. नहीं यहाँ किसी का ठिकाना तुम भी जा रहे हो अब करके नया एक बहाना... चाहा उन्हें शामो शेहेर...
ये फ़ासलें..
ख़ामोशी में वो बनके आवाज रहा करता हैं, मेरे आँखों मैं उसके ख्वाबों का, एक जहान बसा करता हैं.. तन्हाई में अक्सर, कोई मेरा नाम लिया करता...
ये फ़ासले...2
" एक शख्स का आपसे बार बार हर राह में टकराना ...ये इत्तेफाक है?किस्मत है?या दोनों अनचाहे रास्तों का मिलना ?नहीं पता .. " यु त...
No comments:
Post a Comment