Monday, 11 January 2016

नसीब-ए-जन्नत

Post:157*














उजड़ रहे है ख्वाब मेरे ,किस साथी का साथ चुनु ,
इन राहो में है आहें ,खुद को ओर कितना तनहा करू
मेहरबाँ हो जो खुदा तो नसीब-ए-जन्नत कर दे,
कब तक इन बेवफाओ की बस्ती में,मैं खुद को फना करू



Pari Tales


No comments:

Post a Comment

बदसुलूकी