Friday, 23 September 2016

नाज़

Poetry :166*


बहुत साज़िशें करता है
मेरे ख्वाब बसाने वाला
इन्तहा की घडी गिनता है
मुझे इंतज़ार करवाने वाला
नज़रें अब उनकी,शुक्रगुज़ार क्यों न हो,
मेरे हर नाज़ उठाता है
कभी ना सर झुकाने वाला


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