Friday, 1 January 2016

मेरी ओर



एक दौर था
जब करवा मेरी ओर था
आज न मैं वो हूँ
न याद है की वो कौन था

बदली सी हुई, मौसम में,
और जिंदगी बदल गयी
मंज़िल तक आते आते,
लकीर हाथ से फिसल गयी

परछाई भी परायी लगती है
तारीफ भी रुस्वाई लगती है

खामोश थी मैं
जाने क्यों वहां शोर था
आज न मैं वो हूँ
न याद है की वो कौन था


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