Friday, 30 December 2011

ख़ामोशी की वजह..


उन्हें लगता हैं हम रहते हैं उनसे खफा,
नाराज़गी बया कर देते है वो यु बेवजह
क्या हो गया कब ,मुझे भी नहीं पता..
खामोश करके पूछते हैं ख़ामोशी की वजह..
          



Tuesday, 27 December 2011

उम्र की सीमा ...




"कुछ उम्र की सीमा
लिख दी तक़दीर ने
कुछ दूरियों का दौर
 मिला तक़दीर से.."

कभी रास्ते कम पड़ने लगे..
कभी तुम अजनबी से लगने लगे..


"कहते हैं,खूबसूरत है हरेक अश्क
जो आँखों से, किसी के लिए चला आता हैं..
कितना गहरा रिश्ता  है ,उस शख्स से आपका
पल में वो बयाँ कर जाता हैं...!"


 

क्यों हम फ़ासले कम करने लगे...
क्यों और कब तुम ,अपने से लगने लगे...

किसे ढूँढूं अब मैं,इन हाथ की लकीर में...

 
"कुछ उम्र की सीमा
लिख दी तक़दीर ने
कुछ दूरियों का दौर
 मिला तक़दीर से..."








Friday, 23 December 2011

रिश्तों का पिंजरा ...



उससे कह दो मेरी ख्यालों में आना छोड़ दे
रिश्तों के पिंजरों में और उलझाना छोड़ दे

मालूम हैं बहुत तन्हा हूँ मैं खुद की तन्हाई से...
 मुझको अब ये बताना छोड़ दे..

बड़ी तड़प होती हैं कई दिनों से
उससे कह दो ख्वाबों में ,मुझे जगाना छोड़ दे

सारी -सारी रातें उसकी बातें याद आती हैं
देख के करीब आना,मुस्कुराना छोड़ दे...

उससे कह दो मेरी ख्यालों में आना छोड़ दे
रिश्तों के पिंजरों में और उलझाना छोड़ दे.....






Saturday, 17 December 2011

दस्तक...




सुनती हूँ  दस्तक किसी की इन लम्हातों में
नहीं रहा जिससे वास्ता सदियों जामानों से

अहाटें तो  हुई थी पर कोई सामने था,
लगता है यादें दरवाजो से टकराई होंगी..

यादों की टहनियों में बाकी बहुत किस्से हैं
देहलीज में बैठे दिखते,अब भी गली के वो पुराने हिस्से हैं ..
वो पुराने दिन,वो पुराने लोग, जाने किन राहों में कब बिछड़ते चले गए

कुछ याद हैं कुछ भूल गए, वो कौन से राजा और रानी थे..
सोने से पहले ,सुनते थे जो कहानी दादी और नानी से..
दादा जी सिखातें थे तहजीब,संस्कार 
कितना याद आता है उनका हमें प्यार..
पापा की तरह कौन राह में तहलायेगा,
कौन पूरी करेगा मेरी हर ज़िद को?
माँ जैसा भी कोई कभी नहीं बन पायेगा..

कौन फिर इतना हमसे लाड़ जताएगा
हर कोई बस हमें जिंदगी के सही मायने सिखाएगा
देखते- देखते फिर सारा आलम बदल जायेगा
बचपन में खिलोने से खिलाया खूब जिंदगी ने
अब हालातों से खेलना सिखा रही है..

सुनती हूँ दस्तक किसकी  इन लम्हातों  में
नहीं रहा जिससे वास्ता सदियों जमानो से..


बंदिशों के अलाम में पहरा सख्त लगता हैं
जिंदगी के माएनें सिखने में जरा वक़्त लगता हैं..”

Monday, 28 November 2011

चंचल मन ...





जो जाता हैं जाने दो,अगर वो कभी वापस आये..
जो उसे ठुकराओ भी नहीं और अपनाओ भी मत..
ठुकराओ इसलिए नहीं की उसने तुम्हे कभी ठुकराया था..
और अपनाओ इसलिए नहीं,
की चंचल मन को काबू करना,हवा के झोके को हाथ में कैद करने सा है !
















Wednesday, 23 November 2011

ये फ़ासले...2

 
 
" एक शख्स का आपसे बार बार हर राह में टकराना ...ये इत्तेफाक है?किस्मत है?या दोनों अनचाहे रास्तों का मिलना ?नहीं पता .. "

यु तो मुझे एक ही शख्स बार बार हर मोड़ पर नहीं मिला, मेरे साथ आजतक ऐसा कभी नहीं हुआ...
क्यूंकि मुझे मेरी कहानियों वाली किताबी दुनिया से ही फुरसत नहीं रहती .

वाकई ! उसमें बहुत सही बातें लिखी होती हैं,पहले तो एक रोमांचक कहानी ,रहस्मयी मोड़ और फिर  सीधे  लफ्जों में लिखी एक टेढ़ी बात,जी हां !! टेढ़ी ही समझ लीजिये !!!!

और वैसे भी कहानियों में दुनिया जितनी खूबसूरत हमें दिखती है ना ! वो उतनी ही खोखली होती है,किसी हमारे जैसे इंसान ने ही उसका रूप सवारा है,एक कहानी गढ़ कर,वो अलग इन्सान... जो एक संघर्ष भरे सफ़र को भी अपनी आँखों से, बहुत साफ़- सुथरे तरीके से देखता आया  हैं.

मम्मी कहती हैं ,ठीक ही कहती है ," कहानी पढ़कर ये नहीं सोचना चाहिए की जैसा उसके साथ हुआ तुम्हारे साथ भी होगा,सबकी अपनी जिंदगी है तक़दीर है,कुछ याद ही रखना है तो उस कहानी का नैतिक याद रखो,काम आयेगा  ."

मैं जब भी सोचती हूँ,की आखिर मेरी कहानी क्या है..तो बस मुझे मेरे आस-पास भीड़ ही भीड़ नज़र आती हैं..पर मन कहता है,"भीड़ में भी कई राज़ है ,कोई न कोई तो होगा इस भीड़ में कहीं ..जो मेरी तरह कहीं लापता सा फिरता होगा.."

महसूस भी होता हैं, किसी का साथ ,मेरे साथ..पर मैं क्यों उससे अनजान सी हूँ फिर? शायद वो वही है..
शायद वो नहीं है..इन सवालातों में फिर.. किसी दिन उलझा जायेगा..





"ख्वाबो के रंग से ,उनके रंग मिले - जुले है..
बयां होते आँखों-आँखों में उनसे कई  सिलसिले है..
क्यों यहाँ अधूरेपन के काफिले है,
तुम कहीं -- हम कहीं...
क्यों हमारे दर्मिया ये फ़ासले
हैं.. ये फ़ासले हैं.."



Sunday, 20 November 2011




एक खूबसूरत सा पल है वो मेरी किताबी जिंदगी का..
जिसने मेरा रिश्ता कागज़ कालमो से जोड़ दिया हैं...
वो पहेलियों की तरह मेरी कविताओं, मेरी गजलों में उलझा सा है...

इसके आगे क्या करू मैं हाल-ये-दिल बया
खुली आँखों से देखे सपने कहा सच होते है ....?




Monday, 14 November 2011

कोई तो आये




आखिर कब कम होंगे,मेरी ज़िन्दगी के ये घने से सायें ..
ख्वाबों  के रंग से,
कोई तो आये..

जो समझे न अनकहीं बातों को,लफ़्ज़ों में उन्हें किस तरह समझाए..
मन के दर्पण से ,
कोई तो आये..

खामोशियों में मेरी आहट उसकी है, अजनबी मुस्कुराहटों सा, मेरे गालों को छू जाए..
एहसास के दामन  से,
कोई तो आये...


तन्हाई में सुनी वो बातें किसकी है ,रिमझिम बरसात में काश कहीं वो मिल जाये ..
बारिशों के मौसम से,
कोई तो आये...

Tuesday, 8 November 2011

क्या करे .







कैसे हुए हैं ये  हालात क्या करे 
हुए हैं उनकी साज़िस का शिकार क्या करे
उनकी आदत हैं दिल दुखाने की 
हमको हुआ हैं प्यार तो हम क्या करे


इन राहों से हम यु अनजान तो नहीं थे.. 
हम इतने भी कभी नादान तो नहीं थे..


इतने  हुए है वो ख़ास क्या करे 
कोई कसूर उनका भी नहीं क्या करे 
उनकी आदत हैं खफा हो जाने की..
हमको हुआ है प्यार तो हम क्या करे


कहते है जीने के लिए एक कमी जरूरी हैं 
चंद लफ़ज़ों की तलाश हैं ,एक ग़ज़ल अधूरी हैं 

कैसे हुए है वो पास क्या करे
थामकर हाथ पूछते हैं हाल तो इनकार क्या करे
उनकी आदत है रूठ जाने की 
हमको हुआ हैं प्यार तो हम क्या करे



Saturday, 5 November 2011

कौन साथ देता हैं




कौन  साथ  देता  हैं , अंधेरों  में, रौशनी  के  बाद ?

हम  तो  निकल  पड़े  हैं ,  सफ़र  में,  अपनी  परछाइयों के  साथ ,
परछाइयां  कम से  कम  धोखा  तो  नहीं  देंगी .....

कहीं  किसी  मोड़  पर  वो  भी  अपना  दामन  छुड़ा  ही  लेंगी ...
आदत   हैं  हमें  रहने  की ,अपनी  तनहाइयों  के  साथ ...

कौन  साथ  देता  हैं , अंधेरों  में, रौशनी  के  बाद ?

हैं जिसकी  तलाश  ,मुझको  वो  हमसफ़र  मिल  ही  जायेगा ..
रोज़ नज़र  आता  हैं  सूरज ,रात  की   वीरानियों  के  बाद ...

Wednesday, 21 September 2011

मेरी कहानी





कहानी  पढना   और  उनमे  खो  जाना ,
मेरी  आदत   है ..
मैं   हर  तरह  की   कहानियाँ  पढ़ती  हूँ ,
कई  कहानी  मन  को  गुदगुदाती  है ,
कई  हसी की एक  लहर  छोड़  जाती  है ,
कई  दिल  को  पिघलने  पे  मजबूर  कर  देती  है ,
कई  कहानियाँ   कुछ  बातें  सोचने  को  कहती  है ,
कई   कहानियों  का  अंत  नहीं  मिलता ,
तो  कईयों  की  शुरुवात नहीं  मिलती ,


कई  कहानी  अधूरी  रह जाती  है ..
तो  कई  पूरी  होने  पर  भी  पूरी  नहीं  है ,
कई  कहानियाँ  एक  अच्छा  पैगाम  देती  है ,
कई  कहानियाँ  सवालों  के  पिंजरे  में  उलझी   सी  रहती  हैं ,
कई  कहानी  जीने  की  सीख  देती  है ,
तो  कई  कहानियों  में  जीने  की  ही वजह  नहीं  है .....




मैं  अब  भी  एक  सोच  में  डूबी  सी  हूँ ,

की आखिर  ..मेरी  कहानी  कैसी  होगी ?

 इन  सब से  मिलती - जुलती  या  फिर ,
थोड़ी  अलग  सी ,या  इन  सब  से  जुदा  ही  होगी ..

बड़ा  मुश्किल  है  ना ? कहानी  में  आगे ,क्या  होगा  ये  जानना ..
  हर कहानी के
हर एक  पन्नों में कुछ नयी सी बातें बयां  है
 वैसे ही हर दिन  इस कहानी का एक नया सिलसिला -सा  है
इन्हें पलटते -पलटते एक
दिन मेरी भी कहानी बन ही जाएगी..


                                         







Friday, 15 July 2011

♥PaRi...кєѕα нє кση нє ωσ נαηє кαнα нє♥ ..2

                                   
अब रातें   बहुत  बड़ी  लगती है   , उसने  आज  मुझसे  मेरी  पिछली  ज़िन्दगी  के  बारे  में  सवाल  किया ,कैसे  कहू  क्या  बताऊ  उसे ?किसी से कहने से भी क्या फायेदा जब वो इंसान आपकी भावनाए ही ना समझता हो,बहुत कम मिलते है ऐसे जो बिना कहे ही अंदाज़ा लगा लेते है...और कुछ ऐसे भी है कहने पर भी नहीं समझते.

मैं  उसे  क्या  किसी  को  भी  सच  बताने  से  कतरा  सी  जाती  हूँ , जब  कोई  कर  बैठता  है  मुझसे  ये  मुश्किल  सवाल ..
बहुत  मुश्किल  हो  जाता  है  जवाब  देना.

शायद  वो  सवाल  इतना  भी  मुश्किल  नहीं  है ,मुश्किल  मैंने  अपने  लिए  खुद  बना  ली  है
आजकल  तो  और  भी उलझाने जुड़ गयी है, हाँ, वही
  अनकही  सी उलझाने जिन्हें  कहना  चाहकर भी नहीं कहना चाहती
 

ज़िन्दगी  बिखरे  पत्तों   की   तरह  जुदा  होती  जा  रही  है  ..




आज आँखों में नींद ने दस्तक भी नहीं दी है,बस यादों ने खुली आँखों से ख्वाब बुनने शुरू  कर दिए है.
बहुत उत्साहित थी मैं ,ये सोचकर की अपनी ज़िन्दगी का आज हर एक राज़ खोल दूंगी..फिर मन में कोई बोझ लेके जीना नहीं होगा..


 आज का पता नहीं कुछ , मेरे कल में सिर्फ वो था..

वो कहता है जिंदगी सबको एक मौका देती है,पर तुम्हे जिंदगी को मौका देना है ,वो तुम्हे नहीं दे सकती.इतना कहकर वो जाने लगा ,मैं चुप चाप बस उसे देखती रह गयी..कुछ समझ नहीं आया के उससे मैं क्या कहूँ?"मैं उसे ये भी यकीन नहीं दिला सकती की हाँ यह मुमकिन है !!! तुम रुक जाओ.

"जिसे रुकना होता है ,वो बिना कहे ही रुक जाता है..क्या पता उसका साथ मेरी जिंदगी में यही तक था? मैं अकेली हूँ ,ये फिर से बाताने के  लिए "शुक्रिया" , मुझे इस तरह ही जीने ही आदत-सी हो गयी है..

वो अपनी डायरी  से अपने दिन भर का हाल बता रही है....

उसकी माँ उसके रूम की रोशनी देखकर वहा आ गयी और कहा ,"रात को क्या कहानी लिखने बैठ गयी है ?चल सो जा..अब "
 


 वो जितना सोचती है, जिंदगी उसे उतनी  ही उलझनों में डाल देती है. 
वो  पूरी रात बस यही सोचती रही की "   वो क्यों ?और कहाँ ? चला गया?"



जिंदगी की कसमकस में जहाँ ,वो उलझी हुई थी,वहा वो फिर वापस आ गया और कहने लगा," तुम्हे क्या लगा ?मैं भी औरों की तरह  इतनी जल्दी चला जाऊंगा,तुम ही बस अपने फैसले में अडिग रह सकती हो  ?"पता है तुम  जहाँ  हो,वहां से निकलना जरा मुश्किल है ,पर कोई बताएगा नामुमकिन क्या है इस दुनिया में??"






"कोई ठेहेरता  नहीं किसी के लिए...
वक़्त रुकता नहीं किसी के  लिए ,
फिर क्यूँ मैं  तुम्हारे लिए थम सी गयी हूँ.... !!!!!!!






Tuesday, 21 June 2011

अनकही उलझन ..1



"मैंने उसे सपनों में देखा है,तो  फिर  उस शख्स  जैसा  अभी  तक  कोई मुझे क्यूँ नहीं मिला?
क्या सपनो का हकीकत से कोई सम्बन्ध नहीं हैं.

कभी वो मुझे मेरी कहानियों में दिखाई देता है ,तो कभी कई अनकहे सवालों में ..
क्या पता शायद वो वही है जिसे मैं जानती नहीं हूँ... "


"बाकी बातें बाद मैं करुँगी तुमसे,अभी देरी हो गयी है मुझे."
 जल्दी बाज़ी में ,मैं निकल तो गयी,पर मेरी माँ रोज की तरह मुझे यह कहते हुए कॉलेज  के लिए बिदा कर रही है की " ना जाने सुबह- सुबह किससे बतियाती रहती है ??" पर माँ सब कुछ समझती है !!!


और आदत अनुसार पापा ने कहा, "छोटी ,तेरी बस छूट जाएगी.."

मन में मुस्कुराकर मैं फिर घर से निकल गयी.ये सोचते हुए की आज का दिन अच्छा जाने वाला है या बहुत बुरा,शाम को में घर किस सोच,किस परेशानी के साथ लौटूंगी,एक पल को मेरा मन ,दिल खाली नहीं होता, शायद इसलिए मुझे किसी से शिकायत नहीं है,खुद से फुर्सत मिले तब तो किसी के बारे में सोचू मैं.



कभी- कभी तो मुझे खुद पता नहीं चलता की मेरे आस पास हो क्या रहा हैं?
बहुत अच्छा लगता है अपनी ही दुनिया,सपनों में खोया सा रहना,और कभी इन्ही सपनो से डर सा लगता है.


मेरी माँ कहती है ,ज्यादा नहीं सोचना चाहिए,पर मैं ज्यादा सोचती हूँ,सोच को रोकना मुझे नहीं आता.


पर लोगों को मुझे  अपनी सोच से रूबरू भी नहीं कराना आता ,जो,जो सोचता है सोचे मुझे फरक नहीं पड़ता,कौन क्या कहता है ,क्या करता है,सबके अपने उसूल है,सब अपनी तरह जीए तो अच्छा है.


जैसे मैं, मेरी तरह ही हूँ,और मुझे अच्छा लगता है इस तरह रहना !!!!



घर से मैं कितनी सारी सोच लेके निकलती हूँ,और कॉलेज आते -आते,कुछ बातें पीछे छूट जाती हैं,जिनका छूटना मुझे अच्छा सा लगता हैं.
पर एक चीज है जो मुझसे कभी अलग नहीं होती,एक एहसास किसी का..
जो मुझसे कहीं दूर तो हैं,पर हमेशा मेरे साथ रहता हैं.
मैं नहीं जानती वो कौन हैं?

कभी ना कभी ज़िन्दगी,उससे भी सामना करवा ही देगी ..


अरे !! देखा मैं कॉलेज पहुंचते  -पहुंचते कहा पहुच गयी ?ये रोज़ की नहीं,सदियों और सालों की बात हैं," की मैं न मैं ही हूँ,और कभी नहीं सुधरने वाली,ऐसा मैं नहीं सब कहते हैं."  मैं  सबकी बात से सहमत हूँ.


शाम को घर आते ही मुरझा से जाते हैं,और कभी अगर अच्छे मन से वापस आये तो,थकने के बाद भी धूम मचा देते हैं ,सब फिर मेरे सो जाने का इंतज़ार करते है ताकि सब शान्ति के साथ  उनके वो सड़े हुए TV serial  देख पाए..:-(
उनकी मनोकामना  god कभी-कभी  सुन लेता है,और मैं अपने सेल फ़ोन से खेलते -खेलते सो जाती हूँ..





और जब नींद नहीं आती तो अपनी secret  diary  के साथ कुछ time  spent  करना अच्छा लगता हैं ..और आज मैंने कुछ पुराने पन्ने ही  पलटने  शुरू कर दिए..


कितने पुराने वो चुके है उसके पन्ने ,उसमे रखे फूलों से खुशबू आ रही है,उसे खोलते ही पुराने बीते दिनों की कुछ यादे ताज़ा सी हो गयी,जैसे सब कुछ मेरे सामने था
"ओह !! ये क्या लिखा है मैंने !!!" हँसी आती हैं अब पढके,यु तो मुझे बिलकुल  भी पसंद नहीं था ,अपनी रोज के बीतें दिनों के बारे में कुछ भी लिखना पर जो मैंने लिखा था,उसको पढ़कर  वाकई
हँसी आ रही थी.

 लो अब ये ट्रिंग- ट्रिंग फ़ोन की,जब भी मैं खुद से बात करने की कोशिश करती हूँ  ,कुछ न कुछ जरूर होता हैं.

मेरी माँ भी बोलने लगी ," उठा क्यों नहीं लेती फ़ोन?कबसे बज रहा हैं?क्या करती रहती है?"
 

अब उन्हें क्या बताये की क्या करते और सोचते रहते है?शेतानी दिमाक एक जगह रहना ही नहीं चाहता..

फ़ोन तो उठा लिया,पर कुछ समझ में तो आ ही नहीं रहा था, अब भला बताओ  हम किसी और दुनिया में है तो किसी की बात कैसे पल्ले पड़ेगी?

और अगर हम अपनी दुनिया में हो तब भी एक परेशानी ही है,फिर तो मन करता है सबसे ढेर सारी बातें कर डाले,बातें -किस्से ही ख़तम नहीं होते हमारे,फिर चाहे वो कोई भी हो...


 ""फिर रास्ते मिलेंगे,
फिर मंजिल बुलाएगी हमे,
कभी हमसे,फिर रूबरू करवाएगी तुम्हे..
तुम कौन हो..
हम कौन है...
दोनों को ही है उलझन..
ये अनकही उलझाने ,एक दिन समझ में आयेगी हमे.









Sunday, 22 May 2011

ये दोस्ती है ,या सिर्फ प्यार है ..

ये  तन्हाई  है ,या  किसी  की  यादो  की  बोछार है ..?
ये  आंसू  फ़िज़ूल  है ,या  ये  दिल  का  करार  है ..?

ये  दोस्ती  है ,या  सिर्फ  प्यार  है
ये दोस्ती  है ,या  सिर्फ प्यार  है

बड़ी  तकरार  होती  है  इस  रिश्ते  में  कभी ,
तो  कभी  एक  दूसरे  के  बिना  रहना  दुस्वार  है ..

कभी  बेताबी  है ,कभी  लौट  आने  का  इंतज़ार  है ..
शायद दोस्ती  है  ये   उमरभर  की ,
शायद  कुछ  पल  दो  पल  का  साथ  है

ये  दोस्ती  है ,या  सिर्फ  प्यार  है
ये दोस्ती  है ,या  सिर्फ प्यार  है
..




Monday, 25 April 2011

ये फ़ासले - 1






वो दूर है मुझसे और पास भी,
उसकी कमी का है  एहसास भी,
दूर होके भी वो क्यूँ दूर नहीं
पास होके भी वो क्यूँ पास नहीं..

कितने फासले जुड़ने लगे है
इन राहतों से,
कितने रिश्ते जुड़ रहे है
उसकी आहटों से..

वो कल है मेरा और आज भी,
उसकी याद साथ है आज भी,
दूर होके भी वो क्यूँ दूर नहीं
पास होके भी वो क्यूँ पास नहीं..

कितने दिन उसके बिना कटने लगे है
लौट क्यूँ वो आता नहीं
कैसे कहे वो कितना याद आता है.
एक पल को ख्याल उसका जाता नहीं..



वो दूर है मुझसे और पास भी,
उसकी कमी का है  एहसास भी,
दूर होके भी वो क्यूँ दूर नहीं
पास होके भी वो क्यूँ पास नहीं..




Tuesday, 19 April 2011




किसी  की  यादों  में  चिराग  बुझाना  अच्छा  लगता  है ,
आंखें  बंद   करके  अपनी  उनमे  कुछ  ख्वाब  सजाना  अच्छा  लगता  है
क्या  हो   रहा  है  ये ..
क्यों  शभनमी  ओस  की  तरह  भीगी  है  आज  फिर  पलके 

शायद  इसी  स्याही  से  हमे  ग़ज़ल  बनाना  अच्छा  लगता  है ..



अनकहीं उलझन ..

 

उजाड़  रहे  है  खवाब  मेरे ,किस   साथी  की  तलाश  करू ..
बदल रही है राहे तो,किस साथी का साथ चुनु..
मेहेरबा हो जो खुदा तो नसीब-ऐ-जन्नत कर दे.
कब तक इस बेवफाओ की बस्ती में,मैं खुद को फ़ना  करू..





सबको सब कुछ नहीं मिलता





समुन्दर की सीपी में सबको मोती नहीं मिलता,
भटकती है ये परी उसको साहिल नहीं मिलता,
रेट के किनारों में किसी ने दर्द की कलम से लिखा है की..
सबको सब कुछ नहीं मिलता,सबको सबकुछ नहीं मिलता !!!


फूल एक पल को मुस्कुराता है..
दुसरे ही पल वो मुरझाता है,
पत्तियाँ हरी-भरी हरदम नहीं होती,

यु  तो ज़िन्दगी में हमेशा मायूसी नहीं होती..

जो ज़िन्दगी के हर एक पल को जीना चाहता है,
उनके पास चंद पलों की रौनक नहीं होती,
जिसके पास है लम्हे वो जीना ही नहीं चाहते
उनके पास जीने की वजह नहीं होती..


हर पल में हमेशा गम नहीं होता,आकाश के तारों में से
किसी ने तड़प के कहा है की..
सबको सब कुछ नहीं मिलता ,सबको सब कुछ नहीं मिलता..







लोग जीते है कल के लिए..
हम जीते है कल को लिए..

कोई ठेहेरता  नहीं किसी के लिए...
वक़्त रुकता नहीं किसी के  लिए ,
फिर क्यूँ मैं  तुम्हारे लिए थम सी गयी हूँ....


Saturday, 9 April 2011

कमबख्त LECTURES !!

 “KaMbHaKhT LeCtUreS !!!”

तो मेरी  कहानी  शुरू  होती  है  यहाँ से  ,जब  में  एक  STUPID school girl थी ….me and my two
Desk partner’s sonwane and Naagar..the most funniest girl I have ever seen in my life! And my seven wonders group..क्या दिन  थे  यार … Seriously m missing them Lottie…
BUT m sure जहा  भी  होंगे  सब ,मुझे  जरुर  miss  कर  रहे  होंगे ..

Bi-GOD ये  lectures कितना पकाते  हे  यार ..
मुझे  न  किसी  का  भी  speech से  लेकर  lecture तक ,सुनने  में  कोई  interest -winterest नहीं  hai  ,and honestly speaking मुझे  तो  lectures सुनते  ही  न  जाने  क्या  हो  जाता  है  …





जब  भी  कोई  lecture start होता  था , mainly physics का  BI-god मेरा  band-baja baj जाता  था ,मुझे  तो  लगता  था  की  काश  !!!! काश  !!!! आज  तेअचेर  मीटिंग  हो   जाये ,या  MAM नहीं  आये , lecture न  लगे  केसे  भी ..
teacher के  सामने  तो  अच्छी  खाशी  sincere दिखती  थी …पर  मुझे  ही  मालूम  था  की  actualy में इन Lectures  सुनने  में  कितनी  sincere हूँ  ..?and जेसे  ही  किसी  का  lecture start होता  था  न  मेरी  नींदों  का  सिलसिला  बढ़ता   जाता  था  ,मैं  lecture देने  वाले  की  झील  सी eyes में  डूब  जाती  थी …and then what??????:O

 मेरी मेरे  dreamland में  अच्छी  खाशी  entry हो  जाती  थी  aur exactly, lecture के  टाइम  ही   मुझे  या  तो  मुझे  कुछ  लिखने  के  लिए  अच्छे  words मिलते  थे , या  तो  कुछ  न  कुछ  planning’s चलती  रहती  थी ..की  घुमने  कहा  जाना  है  vegera -vegera.., head down करके  सो  जाती  थी  एंड
 whenever mam asked wid my friends they replied –
"mam उसकी  तबियत  ठीक  नहीं  है "

And guess’s what’s next…..????नहीं to sometimes,जाने  क्या  सोचकर  मुस्कुरा  देती  थी  में
Teacher मुझे  फ़ौरन  notice करती  थी  hey…why r u laughing …sleeping or dreaming????:o
Oopss!!! Bi –god...actually both yaar !!!m sleeping on my dreamland… ?(not to worry at all be coj ये  मेने अपने  आप  से  कहा  ..उनसे  नहीं  वरना  वो  तो  दिन  में ही मुझे  stars, moons and etc etc दिखा  ही  देती )…

मेरी  friends भी  confused हो  जाती  थी  की  आखिर  मुझे  हो  क्या  जाता  हे  lecture में ?

मेने  कई बार  ये  try किया  की  में  अपनी  ये  हरकत  छोड़  दू …but no मेरे  अंदर  का  devil मुझसे  kehta है  – “अबे  यार  ये  तो  तेरे  अंदर  naturally है …तू  कभी  नहीं  सुधीर  सकती  !”

well ये school की बात थी अब सब कुछ बदल गया,समय को बदलते जरा भी देर नहीं लगती,कहते हैं न "  वक़्त और हालात सबको सब कुछ सीखा ही देता हैं.."



Friday, 8 April 2011

My Life is full of surprises ...2


मेरा खास वैलेंटाइन्स डे ..

बात  सर्द  वेलेंटाइन  दे  की  सुबह  की है ,गुलाबो की खुशबू सारे  वातावरण मनमोहक  बना  रही  है .काफी लम्बे समय बाद,अस्मा की गोद में हलकी सी सूरज की किरण नजर आने लगी. सूरज की किरण ने लोगो की सुबह में फिर दस्तक दी,लोगों ने राह से गुजरना शुरू कर दिया है..आस पास से गाडिया भी गुजर रही है,मैं आज सुबह से ही झील के किनारे बेठी हूँ,बड़ा सुकून मिलता है मुझे यहाँ आके.जहाँ लोग इस दिन को बड़े उत्साह के साथ माना रहे है,वह मुझे मेरे ख्यालों से ही फुर्सत नहीं.मैं इस दिन को खुद अपने साथ मानती हूँ.

आज असमान बहुत सुन्दर लग रहा था,और में बस उसीको निहारे जा रही थी ,एहसास में जैसे जादू सा चल गया था,और मैं अपनी धुन में एक कविता अपनी डायरी  में उतारने  लगी.






तभी अचानक एक लड़का जो शायद मुझे देख रहा होगा मेरे पास आया,और हाथ में लिया अपना गुलाब मेरी और बढाने लगा..
मैंने उसे घूरकर देखा और कहा ,"माफ़ कीजियेगा?"
वो हँसा और कहा,"अकेली हो"
मैं-"अपने काम से काम रखो,जाओ यहाँ से,मेरा समय बर्बाद मत करो,समझे!"



वो फिर भी नहीं माना.अब मैंने सोचा के उसपे ध्यान ही न दूंगी तो अच्छा होगा...
वो भी कहना लगा,"अरे सुनो,मैं पर्यटक हूँ,सुनिए,मैं इस स्वर्ग की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करने आया हूँ और मैं आपको जरा भी परेशान नहीं करना चाहता था,मुझे माफ़ कर दीजिये,पर विनती है आपसे ये गुलाब ले लीजिये,दोस्ती के नाम पे सही."


थोड़ी देर रूककर उसने फिर कहा ," मैं आपको कौन सा रोज मिलने वाला हूँ?"

मुझे उसकी बातें अच्छी लगी,मैंने उसका दिया वो गुलाब ले लिया..
और कहा ,"और कुछ?"

उसने कहा,"नहीं नहीं ,आपका धन्यवाद ! अलविदा.."[इतना कहकर वो उलटे पाँव भागने लगा"]
मैंने वो गुलाब अपनी डायरी में रखा..और फिर उसको देखने को मुड़ी,और मैंने देखा,एक टूरिस्ट बस,तब मुझे पता चला उसके बारे में,और मुझे बहुत दुख हुआ.वो कोई पर्यटक नहीं था,कैंसर पीड़ित था ,और भी कई कैंसर मरीज़ थे वहाँ.

सारे हॉस्पिटल के सदस्य के साथ,वो सब अपनी ज़िन्दगी के आखिरी पल जी रहे थे.कितने सहेंशील थे वो सब,जो जीना चाहता है उसके पल पल का पता नहीं.
एक तरफ ,मैं चौक गयी थी,बहुत दुख हो रहा था ,समझ नहीं आ रहा था ये सब क्या हो रहा है.
मैंने उसे भी देखा वहां, और वहां गयी भी उन सबसे मिलने ,और उनसे कुछ देर बात भी की,पर मैं उससे नहीं मिल पायी..वो लोग जल्दी जल्दी में चले गए.मेरा दुर्भाग्य था:-(

मेरी तो बोलती ही बंद हो गयी थी,मैं तो अकेली ही खुश हूँ ,और मैंने भगवान् से कहा,"वो आपका भेजा हुआ शख्स था न,जो मुझे ये एहसास दिलाने आया था की मैं अकेली हूँ,तो उसे ये मेरा सन्देश दे दीजियेगा की मैं अकेली जरूर हूँ पर कमजोर नहीं."

और इस बात की मुझे ख़ुशी भी हुयी..मेरी वजह से किसी के चेहरे में एक हसी की लहर आई इससे अच्छा मेरे लिए कुछ नहीं था...पर जो भी हो..किसी को पहली बार मैंने ख़ुशी दी,ये दिन हमेशा याद रहेगा..
 

"मेरी ज़िन्दगी के हर पन्ने अलग अलग रंग के..सब में अनोखे मोड़ है,सच में मेरी ज़िन्दगी आश्चर्य से भरी है.."


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बदसुलूकी