Monday, 14 November 2011

कोई तो आये




आखिर कब कम होंगे,मेरी ज़िन्दगी के ये घने से सायें ..
ख्वाबों  के रंग से,
कोई तो आये..

जो समझे न अनकहीं बातों को,लफ़्ज़ों में उन्हें किस तरह समझाए..
मन के दर्पण से ,
कोई तो आये..

खामोशियों में मेरी आहट उसकी है, अजनबी मुस्कुराहटों सा, मेरे गालों को छू जाए..
एहसास के दामन  से,
कोई तो आये...


तन्हाई में सुनी वो बातें किसकी है ,रिमझिम बरसात में काश कहीं वो मिल जाये ..
बारिशों के मौसम से,
कोई तो आये...

1 comment:

बदसुलूकी