Friday, 23 December 2011

रिश्तों का पिंजरा ...



उससे कह दो मेरी ख्यालों में आना छोड़ दे
रिश्तों के पिंजरों में और उलझाना छोड़ दे

मालूम हैं बहुत तन्हा हूँ मैं खुद की तन्हाई से...
 मुझको अब ये बताना छोड़ दे..

बड़ी तड़प होती हैं कई दिनों से
उससे कह दो ख्वाबों में ,मुझे जगाना छोड़ दे

सारी -सारी रातें उसकी बातें याद आती हैं
देख के करीब आना,मुस्कुराना छोड़ दे...

उससे कह दो मेरी ख्यालों में आना छोड़ दे
रिश्तों के पिंजरों में और उलझाना छोड़ दे.....






1 comment:

बदसुलूकी