कौन साथ देता हैं , अंधेरों में, रौशनी के बाद ?
हम तो निकल पड़े हैं , सफ़र में, अपनी परछाइयों के साथ ,
परछाइयां कम से कम धोखा तो नहीं देंगी .....
कहीं किसी मोड़ पर वो भी अपना दामन छुड़ा ही लेंगी ...
आदत हैं हमें रहने की ,अपनी तनहाइयों के साथ ...
कौन साथ देता हैं , अंधेरों में, रौशनी के बाद ?
हैं जिसकी तलाश ,मुझको वो हमसफ़र मिल ही जायेगा ..
रोज़ नज़र आता हैं सूरज ,रात की वीरानियों के बाद ...


real
ReplyDelete