Tuesday, 19 April 2011

अनकहीं उलझन ..

 

उजाड़  रहे  है  खवाब  मेरे ,किस   साथी  की  तलाश  करू ..
बदल रही है राहे तो,किस साथी का साथ चुनु..
मेहेरबा हो जो खुदा तो नसीब-ऐ-जन्नत कर दे.
कब तक इस बेवफाओ की बस्ती में,मैं खुद को फ़ना  करू..





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बदसुलूकी