Pari Tales
Tuesday, 19 April 2011
अनकहीं उलझन ..
उजाड़ रहे है खवाब मेरे ,किस साथी की तलाश करू ..
बदल रही है राहे तो,किस साथी का साथ चुनु..
मेहेरबा हो जो खुदा तो नसीब-ऐ-जन्नत कर दे.
कब तक इस बेवफाओ की बस्ती में,मैं खुद को फ़ना करू..
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बदसुलूकी
तुम भी जा रहे हो अब
सच ही कहा है किसी ने .. नहीं यहाँ किसी का ठिकाना तुम भी जा रहे हो अब करके नया एक बहाना... चाहा उन्हें शामो शेहेर...
ये फ़ासलें..
ख़ामोशी में वो बनके आवाज रहा करता हैं, मेरे आँखों मैं उसके ख्वाबों का, एक जहान बसा करता हैं.. तन्हाई में अक्सर, कोई मेरा नाम लिया करता...
ये फ़ासले...2
" एक शख्स का आपसे बार बार हर राह में टकराना ...ये इत्तेफाक है?किस्मत है?या दोनों अनचाहे रास्तों का मिलना ?नहीं पता .. " यु त...
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