Friday, 13 January 2012

प्यार नहीं था ...

 
 
आंख खुली तो खुशी का

संसार नहीं था ..

एक पल जीना उसके बेगेर

यु तो दुस्वार नहीं था ..

अपने तो बदले उसका गम

कुछ कम ही था !

जिसपे खुद से जादा भरोसा किया

वो भी बदल गया ...

इतना मुस्किल तो राह -ऐ -इन्तेहाँ नहीं था

कुचल के खवाब सारे ,

जब मेने अपनी देहलीज़ पार की ..

उसके सिवा और किसी का साथ नहीं था !

ये दिल की खुशनसीबी थी जो सह

गया दर्दो गम ..

वरना साँसों का चलना भी

आसान नहीं था !

मुझ बेखबर को कहाँ ..मालूम था की तनहा तय करना है ..

सफ़र ज़िन्दगी का

जब उसने कहा ,

"मुझे तुमसे प्यार नहीं था "  


1 comment:

  1. After reading this post,i asked myself why they did it in love? so much pain inside this poem .

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बदसुलूकी