आंख खुली तो खुशी का संसार नहीं था .. एक पल जीना उसके बेगेर
यु तो दुस्वार नहीं था .. अपने तो बदले उसका गम कुछ कम ही था ! जिसपे खुद से जादा भरोसा किया वो भी बदल गया ... इतना मुस्किल तो राह -ऐ -इन्तेहाँ नहीं था कुचल के खवाब सारे , जब मेने अपनी देहलीज़ पार की .. उसके सिवा और किसी का साथ नहीं था ! ये दिल की खुशनसीबी थी जो सह गया दर्दो गम .. वरना साँसों का चलना भी आसान नहीं था ! मुझ बेखबर को कहाँ ..मालूम था की तनहा तय करना है .. सफ़र ज़िन्दगी का जब उसने कहा , "मुझे तुमसे प्यार नहीं था "
After reading this post,i asked myself why they did it in love? so much pain inside this poem .
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