Saturday, 14 January 2012

ये फासलें ..4

 
 
मुझे नहीं पता !! जिंदगी मुझे कहाँ ले जा रही है?
मुझे तलाश है उसकी ,जिसके बिना ये सफ़र अधूरा है..

कभी कभी डर लगता हैं इन ख्वाबो से,
कहीं भागते- भागते,उसकी तलाश में,
मैं कहीं तनहा न रह जाऊं....
 
आगे कोई हैं या नहीं क्या पता  ?
सूनी-सूनी सी डगर लगती हैं..

जिसकी हैं तलाश मुझे,
कहीं वो मेरे साथ तो नहीं.. 
जिंदगी कहती हैं ,एक दिन ये नज़र उसे पहचान ही लेगी..
 
 
 

1 comment:

बदसुलूकी