Tuesday, 10 January 2012

अनकही उलझन ... 2




3/January/2012

सुबह कितनी खूबसूरत लगती हैं कोहरे के साथ,सर्दियों में सूरज की किरन जैसी राहत और कहाँ है? बहुत आकर्षक लगता है, जब ये किरने चेहरे पे पड़ती हैं ,ठिठुरती रात के बाद मुझे हमेशा इस प्यारी सी सुबह का इंतज़ार सा रहता है.इतनी ठण्ड में रात को नींद किसको आती हैं?पर रजाई से निकलने का मन नहीं करता. . . . .
कुछ देर करवट बदली ,फिर जरा हिम्मत करके रजाई से अपना हाथ निकाला ,टेबल पे हाथ फेरना शुरू कर दिया,जब कुछ हाथ नहीं लगा तो उठना ही पड़ा.. :( 
हमेशा की तरह कंप्यूटर टेबल पे पड़ा था बेचारा मेरा सेल : (
जैसे-तैसे अँधेरे में,सेल ढून्ढ के वापस बेड में चली गयी,क्या है न ,अब अगर रात में 2 बजे मैं डायेरी लेके बैठ जाती तो सबका जाग जाना तय था...




"रात में अस्मा से,तारों के साथ,किसी का ख्वाब टूटता होगा,

याद आये जब मेरी,मुझसे मिलने को तरसता होगा,

मन मेरे मन ,क्या ...वो भी इस तरह कुछ सोचता होगा?


देर रात तक ,सुनी राहो को तनहा, क्या वो ताकता होगा,

खामोश लबों में कहीं कई राज़ वो रखता होगा,

मन मेरे मन ,क्या... वो भी इस तरह कुछ सोचता होगा?


रात को करवटें बदल कर,तकिए से अनकहे गम कहता होगा,

खुली आँखों से कई ख्वाब क्या वो भी देखता होगा...
मन मेरे मन ,क्या... वो भी इस तरह कुछ सोचता होगा? "



 बस जाने क्यों यही अलफ़ाज़ मन में आये..टाइप करते करते कब सो गयी पता ही नहीं चला..
  




                                       "  कहने को हम कितना भी कह डाले,
                                         कुछ बातें हर दम अनकही रह जाती है..
                                         कहने को कितनी भी मुश्किले हल कर डाले,
                                          उलझने हमेशा उलझने
ही रह जाती है.... "










2 comments:

बदसुलूकी