जो उसे ठुकराओ भी नहीं और अपनाओ भी मत..
Monday, 28 November 2011
Wednesday, 23 November 2011
ये फ़ासले...2
" एक शख्स का आपसे बार बार हर राह में टकराना ...ये इत्तेफाक है?किस्मत है?या दोनों अनचाहे रास्तों का मिलना ?नहीं पता .. "
यु तो मुझे एक ही शख्स बार बार हर मोड़ पर नहीं मिला, मेरे साथ आजतक ऐसा कभी नहीं हुआ...
क्यूंकि मुझे मेरी कहानियों वाली किताबी दुनिया से ही फुरसत नहीं रहती .
वाकई ! उसमें बहुत सही बातें लिखी होती हैं,पहले तो एक रोमांचक कहानी ,रहस्मयी मोड़ और फिर सीधे लफ्जों में लिखी एक टेढ़ी बात,जी हां !! टेढ़ी ही समझ लीजिये !!!!
और वैसे भी कहानियों में दुनिया जितनी खूबसूरत हमें दिखती है ना ! वो उतनी ही खोखली होती है,किसी हमारे जैसे इंसान ने ही उसका रूप सवारा है,एक कहानी गढ़ कर,वो अलग इन्सान... जो एक संघर्ष भरे सफ़र को भी अपनी आँखों से, बहुत साफ़- सुथरे तरीके से देखता आया हैं.
मम्मी कहती हैं ,ठीक ही कहती है ," कहानी पढ़कर ये नहीं सोचना चाहिए की जैसा उसके साथ हुआ तुम्हारे साथ भी होगा,सबकी अपनी जिंदगी है तक़दीर है,कुछ याद ही रखना है तो उस कहानी का नैतिक याद रखो,काम आयेगा ."
मैं जब भी सोचती हूँ,की आखिर मेरी कहानी क्या है..तो बस मुझे मेरे आस-पास भीड़ ही भीड़ नज़र आती हैं..पर मन कहता है,"भीड़ में भी कई राज़ है ,कोई न कोई तो होगा इस भीड़ में कहीं ..जो मेरी तरह कहीं लापता सा फिरता होगा.."
महसूस भी होता हैं, किसी का साथ ,मेरे साथ..पर मैं क्यों उससे अनजान सी हूँ फिर? शायद वो वही है..
शायद वो नहीं है..इन सवालातों में फिर.. किसी दिन उलझा जायेगा..
"ख्वाबो के रंग से ,उनके रंग मिले - जुले है..
बयां होते आँखों-आँखों में उनसे कई सिलसिले है..
क्यों यहाँ अधूरेपन के काफिले है,
तुम कहीं -- हम कहीं...
क्यों हमारे दर्मिया ये फ़ासले हैं.. ये फ़ासले हैं.."
Monday, 14 November 2011
कोई तो आये
आखिर कब कम होंगे,मेरी ज़िन्दगी के ये घने से सायें ..
ख्वाबों के रंग से,
कोई तो आये..
जो समझे न अनकहीं बातों को,लफ़्ज़ों में उन्हें किस तरह समझाए..
मन के दर्पण से ,
कोई तो आये..
खामोशियों में मेरी आहट उसकी है, अजनबी मुस्कुराहटों सा, मेरे गालों को छू जाए..
एहसास के दामन से,
कोई तो आये...
तन्हाई में सुनी वो बातें किसकी है ,रिमझिम बरसात में काश कहीं वो मिल जाये ..
बारिशों के मौसम से,
कोई तो आये...
Tuesday, 8 November 2011
क्या करे .
कैसे हुए हैं ये हालात क्या करे
हुए हैं उनकी साज़िस का शिकार क्या करे
उनकी आदत हैं दिल दुखाने की
हमको हुआ हैं प्यार तो हम क्या करे
इन राहों से हम यु अनजान तो नहीं थे..
हम इतने भी कभी नादान तो नहीं थे..
इतने हुए है वो ख़ास क्या करे
कोई कसूर उनका भी नहीं क्या करे
उनकी आदत हैं खफा हो जाने की..
हमको हुआ है प्यार तो हम क्या करे
कहते है जीने के लिए एक कमी जरूरी हैं
चंद लफ़ज़ों की तलाश हैं ,एक ग़ज़ल अधूरी हैं
कैसे हुए है वो पास क्या करे
थामकर हाथ पूछते हैं हाल तो इनकार क्या करे
उनकी आदत है रूठ जाने की
हमको हुआ हैं प्यार तो हम क्या करे
Saturday, 5 November 2011
कौन साथ देता हैं
कौन साथ देता हैं , अंधेरों में, रौशनी के बाद ?
हम तो निकल पड़े हैं , सफ़र में, अपनी परछाइयों के साथ ,
परछाइयां कम से कम धोखा तो नहीं देंगी .....
कहीं किसी मोड़ पर वो भी अपना दामन छुड़ा ही लेंगी ...
आदत हैं हमें रहने की ,अपनी तनहाइयों के साथ ...
कौन साथ देता हैं , अंधेरों में, रौशनी के बाद ?
हैं जिसकी तलाश ,मुझको वो हमसफ़र मिल ही जायेगा ..
रोज़ नज़र आता हैं सूरज ,रात की वीरानियों के बाद ...
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सच ही कहा है किसी ने .. नहीं यहाँ किसी का ठिकाना तुम भी जा रहे हो अब करके नया एक बहाना... चाहा उन्हें शामो शेहेर...
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ख़ामोशी में वो बनके आवाज रहा करता हैं, मेरे आँखों मैं उसके ख्वाबों का, एक जहान बसा करता हैं.. तन्हाई में अक्सर, कोई मेरा नाम लिया करता...
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" एक शख्स का आपसे बार बार हर राह में टकराना ...ये इत्तेफाक है?किस्मत है?या दोनों अनचाहे रास्तों का मिलना ?नहीं पता .. " यु त...










