मेरा खास वैलेंटाइन्स डे ..
बात सर्द वेलेंटाइन दे की सुबह की है ,गुलाबो की खुशबू सारे वातावरण मनमोहक बना रही है .काफी लम्बे समय बाद,अस्मा की गोद में हलकी सी सूरज की किरण नजर आने लगी. सूरज की किरण ने लोगो की सुबह में फिर दस्तक दी,लोगों ने राह से गुजरना शुरू कर दिया है..आस पास से गाडिया भी गुजर रही है,मैं आज सुबह से ही झील के किनारे बेठी हूँ,बड़ा सुकून मिलता है मुझे यहाँ आके.जहाँ लोग इस दिन को बड़े उत्साह के साथ माना रहे है,वह मुझे मेरे ख्यालों से ही फुर्सत नहीं.मैं इस दिन को खुद अपने साथ मानती हूँ.
आज असमान बहुत सुन्दर लग रहा था,और में बस उसीको निहारे जा रही थी ,एहसास में जैसे जादू सा चल गया था,और मैं अपनी धुन में एक कविता अपनी डायरी में उतारने लगी.
तभी अचानक एक लड़का जो शायद मुझे देख रहा होगा मेरे पास आया,और हाथ में लिया अपना गुलाब मेरी और बढाने लगा..
मैंने उसे घूरकर देखा और कहा ,"माफ़ कीजियेगा?"
वो हँसा और कहा,"अकेली हो"
मैं-"अपने काम से काम रखो,जाओ यहाँ से,मेरा समय बर्बाद मत करो,समझे!"
वो फिर भी नहीं माना.अब मैंने सोचा के उसपे ध्यान ही न दूंगी तो अच्छा होगा...
वो भी कहना लगा,"अरे सुनो,मैं पर्यटक हूँ,सुनिए,मैं इस स्वर्ग की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करने आया हूँ और मैं आपको जरा भी परेशान नहीं करना चाहता था,मुझे माफ़ कर दीजिये,पर विनती है आपसे ये गुलाब ले लीजिये,दोस्ती के नाम पे सही."
थोड़ी देर रूककर उसने फिर कहा ," मैं आपको कौन सा रोज मिलने वाला हूँ?"
मुझे उसकी बातें अच्छी लगी,मैंने उसका दिया वो गुलाब ले लिया..
और कहा ,"और कुछ?"
उसने कहा,"नहीं नहीं ,आपका धन्यवाद ! अलविदा.."[इतना कहकर वो उलटे पाँव भागने लगा"]
मैंने वो गुलाब अपनी डायरी में रखा..और फिर उसको देखने को मुड़ी,और मैंने देखा,एक टूरिस्ट बस,तब मुझे पता चला उसके बारे में,और मुझे बहुत दुख हुआ.वो कोई पर्यटक नहीं था,कैंसर पीड़ित था ,और भी कई कैंसर मरीज़ थे वहाँ.
सारे हॉस्पिटल के सदस्य के साथ,वो सब अपनी ज़िन्दगी के आखिरी पल जी रहे थे.कितने सहेंशील थे वो सब,जो जीना चाहता है उसके पल पल का पता नहीं.
एक तरफ ,मैं चौक गयी थी,बहुत दुख हो रहा था ,समझ नहीं आ रहा था ये सब क्या हो रहा है.मैंने उसे भी देखा वहां, और वहां गयी भी उन सबसे मिलने ,और उनसे कुछ देर बात भी की,पर मैं उससे नहीं मिल पायी..वो लोग जल्दी जल्दी में चले गए.मेरा दुर्भाग्य था:-(
मेरी तो बोलती ही बंद हो गयी थी,मैं तो अकेली ही खुश हूँ ,और मैंने भगवान् से कहा,"वो आपका भेजा हुआ शख्स था न,जो मुझे ये एहसास दिलाने आया था की मैं अकेली हूँ,तो उसे ये मेरा सन्देश दे दीजियेगा की मैं अकेली जरूर हूँ पर कमजोर नहीं."
और इस बात की मुझे ख़ुशी भी हुयी..मेरी वजह से किसी के चेहरे में एक हसी की लहर आई इससे अच्छा मेरे लिए कुछ नहीं था...पर जो भी हो..किसी को पहली बार मैंने ख़ुशी दी,ये दिन हमेशा याद रहेगा..
"मेरी ज़िन्दगी के हर पन्ने अलग अलग रंग के..सब में अनोखे मोड़ है,सच में मेरी ज़िन्दगी आश्चर्य से भरी है.."
http://26jan2002.blogspot.com/


I am not sure anyone can be with such a beautiful story.
ReplyDeleteBut you, so think it may be.
Lucky ..
wow! Really this story was so touching, i ll juz say keep writing such incidents. and yeah,u didn't interpret one more msg of god that he wanted to tell u leave the world aside, He(god) is with you!!
ReplyDeleteWhen Lord Krishna was with Arjun, whom else did he need :-)
ThanX Karan & unknw writer for such a sweet response on my blog.
ReplyDelete@ unkwn writer,"I'm glad the Lord is with me somewhere"
:-)
NICE PARI.........keep it up :) all the best...... god bless u :)
ReplyDeletethankzz a lot payu :)
ReplyDeletewhat an nice incident,luckily you got a imaginary and wonderful chapter.
ReplyDeletekeep posting :)
Your tale'S have special effects
ReplyDeleteit is the best one