Tuesday, 11 September 2012

दिखता.. वो रब नहीं....!!

हर कहीं है, मौजूद.. जहां में,
पर, दिखता.. वो रब नहीं...

बया करने को है कई बातें,
हूँ बेजुबा, जैसे.. कहने को लब नहीं...

टकरा जाये फिर वो किस्मत से
हुआ ऐसा कोई .. करतब नहीं

फासलों को सहने की ...आदत हैं उसे,
तो हमें भी... मिलने की अब तलब नहीं..

मुकम्मल जहाँ में उजड़ी हैं..ये जिंदगी ..
सबकुछ है मगर..जाने क्यों 'सब ' नहीं..

हर कहीं है, मौजूद.. जहां में,
पर, दिखता.. वो रब नहीं...
 
 

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बदसुलूकी