Thursday, 20 September 2012

कोई साया साथ चलने लगा है...



यादो के झरनों से ,
पल-पल कोई बहने लगा हैं...
तनहा चलते चलते ,
कोई साया यूँ ..साथ चलने लगा है..

मेरी ख़ामोशी में ,
जुबा बनकर वो,ग़ज़ल कहने लगा है..

धुप में निखरती थी ... मैं कभी ,
अब सावन खूबसूरत लगने लगा हैं,

तकियों में लिपटी ,वो रातें ..कहा खो गयी..
ख्वाब बनकर कोई, नींदों में बसने लगा हैं ..

सूरज की किरणों में
रोशन कोई चेहरा लगने लगा है..
तनहा चलते चलते
कोई साया यूँ ..साथ चलने लगा है...
 
 

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बदसुलूकी