सुनती हूँ दस्तक किसी की इन लम्हातों में
नहीं रहा जिससे वास्ता सदियों जामानों से
अहाटें तो हुई थी पर कोई सामने न था,
लगता है यादें दरवाजो से टकराई होंगी..
यादों की टहनियों में बाकी बहुत किस्से हैं
देहलीज में बैठे दिखते,अब भी गली के वो पुराने हिस्से हैं ..
वो पुराने दिन,वो पुराने लोग, जाने किन राहों में कब बिछड़ते चले गए
कुछ याद हैं कुछ भूल गए, वो कौन से राजा और रानी थे..
सोने से पहले ,सुनते थे जो कहानी दादी और नानी से..
दादा जी सिखातें थे तहजीब,संस्कार
कितना याद आता है उनका हमें प्यार..
पापा की तरह कौन राह में तहलायेगा,
कौन पूरी करेगा मेरी हर ज़िद को?
माँ जैसा भी कोई कभी नहीं बन पायेगा..
कौन फिर इतना हमसे लाड़ जताएगा
हर कोई बस हमें जिंदगी के सही मायने सिखाएगा
देखते- देखते फिर सारा आलम बदल जायेगा
बचपन में खिलोने से खिलाया खूब जिंदगी ने
अब हालातों से खेलना सिखा रही है..
सुनती हूँ दस्तक किसकी इन लम्हातों में
नहीं रहा जिससे वास्ता सदियों जमानो से..
“बंदिशों के अलाम में पहरा सख्त लगता हैं
जिंदगी के माएनें सिखने में जरा वक़्त लगता हैं..”

great: agreed copmletely
ReplyDeleteThe bitter truth by life
ReplyDeleteparents are next to god.
ReplyDeletejara nahin bahot waqt lagta hai
ReplyDeletewell keep writing,truth part