Friday, 23 September 2016

नाज़

Poetry :166*


बहुत साज़िशें करता है
मेरे ख्वाब बसाने वाला
इन्तहा की घडी गिनता है
मुझे इंतज़ार करवाने वाला
नज़रें अब उनकी,शुक्रगुज़ार क्यों न हो,
मेरे हर नाज़ उठाता है
कभी ना सर झुकाने वाला


Thursday, 1 September 2016

बेरुखी........



 Post; 165*


मोहब्बत में बेरुखी अपनाना,अलग बात है 
नहीं करती शिकायत, ये अलग बात है...
नाराज़गी में मुस्कुराना,अलग बात है
हु खुद से खफा,ये अलग बात है...
यादो को भुलाना, अलग बात है
उसे कुछ याद नहीं ,ये अलग बात है...
मौसम का बदलना, अलग बात है
तुझे कदर नहीं,ये अलग बात है...
चोट खाकर संभालना, अलग बात है
रोज नज़रों से गिरना,ये अलग बात है...



बदसुलूकी