Monday, 24 March 2014

बेइंतेहा दूरी..


जीने में शायद .. एक आरज़ू , अधूरी थी 
था इंकार उसे.. तो कभी न , मंज़ूरी दी
फ़क़त,उसकी हर ख्वाइश भी.. बेइंतेहा पूरी कि
उसने दूरी मांगी.. तो उसे दूरी दी ..

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बदसुलूकी