Wednesday, 19 March 2014

वीरान इश्क़



भीगती है ज़र ,आसमा कि स्याहियों से 
लगता है डर, खुद कि परछाइयों से
खोयी हुई आवाज़ मेरी, कोई तो ढून्ढ लाये ...
वीरान है घर, इस इश्क़ कि तन्हाइयो से



No comments:

Post a Comment

बदसुलूकी