Pari Tales
Wednesday, 19 March 2014
वीरान इश्क़
भीगती है ज़र ,आसमा कि स्याहियों से
लगता है डर, खुद कि परछाइयों से
खोयी हुई आवाज़ मेरी, कोई तो ढून्ढ लाये ...
वीरान है घर, इस इश्क़ कि तन्हाइयो से
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बदसुलूकी
तुम भी जा रहे हो अब
सच ही कहा है किसी ने .. नहीं यहाँ किसी का ठिकाना तुम भी जा रहे हो अब करके नया एक बहाना... चाहा उन्हें शामो शेहेर...
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