Thursday, 20 September 2012

कोई साया साथ चलने लगा है...



यादो के झरनों से ,
पल-पल कोई बहने लगा हैं...
तनहा चलते चलते ,
कोई साया यूँ ..साथ चलने लगा है..

मेरी ख़ामोशी में ,
जुबा बनकर वो,ग़ज़ल कहने लगा है..

धुप में निखरती थी ... मैं कभी ,
अब सावन खूबसूरत लगने लगा हैं,

तकियों में लिपटी ,वो रातें ..कहा खो गयी..
ख्वाब बनकर कोई, नींदों में बसने लगा हैं ..

सूरज की किरणों में
रोशन कोई चेहरा लगने लगा है..
तनहा चलते चलते
कोई साया यूँ ..साथ चलने लगा है...
 
 

Tuesday, 11 September 2012

दिखता.. वो रब नहीं....!!

हर कहीं है, मौजूद.. जहां में,
पर, दिखता.. वो रब नहीं...

बया करने को है कई बातें,
हूँ बेजुबा, जैसे.. कहने को लब नहीं...

टकरा जाये फिर वो किस्मत से
हुआ ऐसा कोई .. करतब नहीं

फासलों को सहने की ...आदत हैं उसे,
तो हमें भी... मिलने की अब तलब नहीं..

मुकम्मल जहाँ में उजड़ी हैं..ये जिंदगी ..
सबकुछ है मगर..जाने क्यों 'सब ' नहीं..

हर कहीं है, मौजूद.. जहां में,
पर, दिखता.. वो रब नहीं...
 
 

बदसुलूकी