Post-136*
सदियों से नहीं हुई...
वो बात लिख रही हूँ ,
उदासी की पनाहों में
तेरी याद लिख रही हूँ ....
मेरी किन्ही नजाखातों पे
तेरा वो सख्त हो जाना..
याद आता है बहुत मुझे
तेरा हर रोज मानना ...
कुदरत के नियमों से ढली
ये शाम लिख रही हूँ..
उदासी की पनाहों में
तेरी याद लिख रही हूँ ..

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