Tuesday, 21 May 2013
Saturday, 4 May 2013
मुखातिब किताब
इनायत नहीं होती,खुदा के शेहेर में अब..
फिर भी रोज ये आँखें... ख्वाब सजा लेती हैं..
नाराज़ सी रहती हैं .. कोई कमी इस दिल में,
पतझड़ के आलम में,बारिशो की रज़ा लेती है..
इश्क में सुकून, मुनासिब नहीं होता
हर शक्स मुझसे ,मुखातिब नहीं होता..
तन्हाई के आलम में,
किताब में मिले ....
हर शब्द ने कहा "ये इश्क हैं ..
इश्क हैं ....
इश्क हैं ....."
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सच ही कहा है किसी ने .. नहीं यहाँ किसी का ठिकाना तुम भी जा रहे हो अब करके नया एक बहाना... चाहा उन्हें शामो शेहेर...
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ख़ामोशी में वो बनके आवाज रहा करता हैं, मेरे आँखों मैं उसके ख्वाबों का, एक जहान बसा करता हैं.. तन्हाई में अक्सर, कोई मेरा नाम लिया करता...
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" एक शख्स का आपसे बार बार हर राह में टकराना ...ये इत्तेफाक है?किस्मत है?या दोनों अनचाहे रास्तों का मिलना ?नहीं पता .. " यु त...



