Monday, 31 December 2012

ये फासलें..



2012  का आखिरी दिन.जिंदगी के पल जब अच्छे लगने लगते है,तो पता ही नहीं चलता की साल कब गुज़र गया,पिछले कुछ महीनो में सब कुछ बदल गया,सिवा पुराने रास्तों और कुछ यादों के..परिवर्तन जिंदगी का नियम है,कभी कुछ बिन ,मांगे मिल जाता है..कभी बिन बताये ,कुछ खो जाता है...

chetak  Bridge , Monday,31/12/2012,08:21am


"सपना देखा,कागज़ पे उतरा,पूरा किया..."जितनी बार ये लाइन उस hoarding  में पढ़ती हूँ,एक कशमकश  में पड़ जाती हूँ..ये कहना है आर्किटेक्ट का,उनके हाथ की कलम किसी जादू की छड़ी से कम नहीं है,वो खुली आँखों से सपना गढ़कर,कोरे कागज़ पर केवल उतारते ही नहीं,बल्कि उस सपने को हकीकत का नाम भी देते है..
इन सपनो के मामलों में मैं शायद उनसे बहुत पीछे हूँ,मेरा सपना उनसे अलग है..पर सपना तो सपना ही होता है ना..मैं अपनी हाथ की कलम से अपना सपना नहीं,किसी की यादों और उससे जुड़े मेरे एहसासों को शब्दों का रूप देती हूँ,फर्क बस इतना है के वो सपना,सपनों तक ही सिमित रह जाता है,बाहर नहीं आता,आँखों के दरवाज़े खुलते ही,कहीं खो सा जाता है आजकल ..
पर कोई अफ़सोस नहीं ,शायद सपनों की इमारतें बनाने में ख़ुदा को जरा और वक़्त लगेगा ..

"    आँखों से कहीं बात अधूरी नहीं होगी..
      किसी कहानी में इतनी दूरी नहीं होगी..
               वक़्त,तक़दीर,रब ,सब आजमाएंगे हमें..
                    बिना फासलों के ये चाहत कभी पूरी नहीं होगी.."




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