Friday, 30 December 2011

ख़ामोशी की वजह..


उन्हें लगता हैं हम रहते हैं उनसे खफा,
नाराज़गी बया कर देते है वो यु बेवजह
क्या हो गया कब ,मुझे भी नहीं पता..
खामोश करके पूछते हैं ख़ामोशी की वजह..
          



Tuesday, 27 December 2011

उम्र की सीमा ...




"कुछ उम्र की सीमा
लिख दी तक़दीर ने
कुछ दूरियों का दौर
 मिला तक़दीर से.."

कभी रास्ते कम पड़ने लगे..
कभी तुम अजनबी से लगने लगे..


"कहते हैं,खूबसूरत है हरेक अश्क
जो आँखों से, किसी के लिए चला आता हैं..
कितना गहरा रिश्ता  है ,उस शख्स से आपका
पल में वो बयाँ कर जाता हैं...!"


 

क्यों हम फ़ासले कम करने लगे...
क्यों और कब तुम ,अपने से लगने लगे...

किसे ढूँढूं अब मैं,इन हाथ की लकीर में...

 
"कुछ उम्र की सीमा
लिख दी तक़दीर ने
कुछ दूरियों का दौर
 मिला तक़दीर से..."








Friday, 23 December 2011

रिश्तों का पिंजरा ...



उससे कह दो मेरी ख्यालों में आना छोड़ दे
रिश्तों के पिंजरों में और उलझाना छोड़ दे

मालूम हैं बहुत तन्हा हूँ मैं खुद की तन्हाई से...
 मुझको अब ये बताना छोड़ दे..

बड़ी तड़प होती हैं कई दिनों से
उससे कह दो ख्वाबों में ,मुझे जगाना छोड़ दे

सारी -सारी रातें उसकी बातें याद आती हैं
देख के करीब आना,मुस्कुराना छोड़ दे...

उससे कह दो मेरी ख्यालों में आना छोड़ दे
रिश्तों के पिंजरों में और उलझाना छोड़ दे.....






Saturday, 17 December 2011

दस्तक...




सुनती हूँ  दस्तक किसी की इन लम्हातों में
नहीं रहा जिससे वास्ता सदियों जामानों से

अहाटें तो  हुई थी पर कोई सामने था,
लगता है यादें दरवाजो से टकराई होंगी..

यादों की टहनियों में बाकी बहुत किस्से हैं
देहलीज में बैठे दिखते,अब भी गली के वो पुराने हिस्से हैं ..
वो पुराने दिन,वो पुराने लोग, जाने किन राहों में कब बिछड़ते चले गए

कुछ याद हैं कुछ भूल गए, वो कौन से राजा और रानी थे..
सोने से पहले ,सुनते थे जो कहानी दादी और नानी से..
दादा जी सिखातें थे तहजीब,संस्कार 
कितना याद आता है उनका हमें प्यार..
पापा की तरह कौन राह में तहलायेगा,
कौन पूरी करेगा मेरी हर ज़िद को?
माँ जैसा भी कोई कभी नहीं बन पायेगा..

कौन फिर इतना हमसे लाड़ जताएगा
हर कोई बस हमें जिंदगी के सही मायने सिखाएगा
देखते- देखते फिर सारा आलम बदल जायेगा
बचपन में खिलोने से खिलाया खूब जिंदगी ने
अब हालातों से खेलना सिखा रही है..

सुनती हूँ दस्तक किसकी  इन लम्हातों  में
नहीं रहा जिससे वास्ता सदियों जमानो से..


बंदिशों के अलाम में पहरा सख्त लगता हैं
जिंदगी के माएनें सिखने में जरा वक़्त लगता हैं..”

बदसुलूकी