Wednesday, 30 December 2015

अनगिनत ख्वाइशें


अजनबी से शेहेर  में
आजाद ख्याल की लड़की हूँ
आसमा की चाहत में
बाहें फैला के उड़ती हूँ

थोड़ी सी सरफिरी हूँ
बात बात में चिढ़ती हूँ
अनगिनत ख्वाइशों लिए
सरे-जहां से लड़ती हूँ

नाम पता नहीं मेरा
गुमनाम गुमनाम सी फिरती हूँ
रेशम हवा ,तनहा शाम में
रुत-ए-मुस्कान से  मिलती हूँ

अजनबी से शेहेर  में
आजाद ख्याल की लड़की हूँ
आसमा की चाहत में
बाहें फैला के उड़ती हूँ



Wednesday, 26 August 2015

खामोश हूँ



Pot-151* 

खामोश हूँ की मैं अपनों को रंग बदलते देखती हूँ
शोर तो स्थिर समंदर की लेहरे भी करके वही रह जाती है ,
खामोश हूँ की मैं सुबह सूरज उगते तो शाम उसको डूबते देखती हूँ
मौन और मुस्कान कहते है कवि,है इंसान के श्रृंगार ,
खामोश हुँ की मैं वक़्त के हर लहज़े समझती हूँ
हाँ है ज़िद और मंज़िल को खुद तक मोड़ने की चाह भी ,
खामोश हूँ की सबकी सोच में खुद को खोने से ड़रती हूँ
अंजनी राह में चलने का हौसला भी है और अडिग फैसला भी ,
खामोश हूँ की मैं खुद से ही खुद को रोज परखती हूँ  
खामोश हूँ की....मैं अपनों को रंग बदलते देखती हूँ



Saturday, 23 May 2015

बेजान जिस्म..




न कुछ पाना चाहती हूँ 
न कुछ खोना चाहती हूँ..
कभी खुलके हँसना
तो कभी जी भर के रोना चाहती हूँ

शोर ही शोर गूंजते है वीरानियों में
एक पल को सही
सुकून से सोना चाहती हूँ ..

न कुछ कहना चाहती हूँ
न चुप रहना चाहती हूँ
बैठी इन्ही राहो में
हर सितम सहना चाहती हूँ

जिस्म बेजान है ,रूह फ़ना है
बंज़र जमी में जैसे
ख़्वाब कई संजोना चाहती हूँ

Tuesday, 24 March 2015

एक जहाँ ...

एक और जहाँ बसता है 
इन आँखों के पीछे
जैसे खामोशिया कई दबी है
सलाखों के पीछे
बेख्याली में वो अक्सर सताता है
नींद नहीं आती फिर उन्हीं
झूठी बातों के पीछे
सुना है शेहेर के आईने में
मुझे तलाशता है,छुपा है कहीं भीड़ में
इन लाखों के पीछे


Saturday, 17 January 2015

किस कशमश में


Post:149*

किन्हीं बेजान ख्यालों से 
उजालों की ओर भागती हूँ,
जाने किस कशमश में, मैं रात भर जागती हूँ

नींदों को रख सिरहनो से
उस चाँद को ताकती हूँ,
जाने किस कशमश में,मैं रात भर जागती हूँ

तन्हा आसमान के सितारों से
कोई ख्वाब सा चाहती हूँ
जाने किस कशमश में, मैं रात भर जागती हूँ



बदसुलूकी