Friday, 5 September 2014

ख्वाब का मंज़र



सुनके उसके लफ्ज़ो को
बेवजह उससे रूठती हूँ..
छूकर इन बारिशों को
अक्सर उसको ढूंढ़ती हूँ..

कोहरे के ओसन में
धुंदलाता है एक चेहरा
ख़्वाबों के आगोश में
उस खोये मंज़र को ढूंढती हूँ..

आधी अधूरी नींदो में,
रुखसत हुआ.. वो नज़रों से
दिन की झिलमिलाहट में भी,
ख्वाब उसके ढूंढती हूँ


सुनके उसके लफ्ज़ो को
बेवजह उससे रूठती हूँ..
छूकर इन बारिशों को
अक्सर उसको ढूंढ़ती हूँ..

बदसुलूकी