Pari Tales
Monday, 4 August 2014
साथ ..
उसे उड़ान कि तलब
मुझे आसमान पसंद था,
उसे समंदर कि ख्वाइश
मुझे बारिश-ए- ख्वाब पसंद था ,
जुदा सी थी दोनों की अदाएं
पर जाने क्यों
एक
दूसरे
का
साथ
पसंद
था
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Comments (Atom)
बदसुलूकी
तुम भी जा रहे हो अब
सच ही कहा है किसी ने .. नहीं यहाँ किसी का ठिकाना तुम भी जा रहे हो अब करके नया एक बहाना... चाहा उन्हें शामो शेहेर...
ये फ़ासलें..
ख़ामोशी में वो बनके आवाज रहा करता हैं, मेरे आँखों मैं उसके ख्वाबों का, एक जहान बसा करता हैं.. तन्हाई में अक्सर, कोई मेरा नाम लिया करता...
ये फ़ासले...2
" एक शख्स का आपसे बार बार हर राह में टकराना ...ये इत्तेफाक है?किस्मत है?या दोनों अनचाहे रास्तों का मिलना ?नहीं पता .. " यु त...