Friday, 6 April 2012

ये फासलें....



मेरी सोती आँखों में भी ,उसके ख्वाबों का सवेरा रहता हैं
 जाने कैसे लोग चैन से सो जाते हैं ?
मेरी जागती आँखों में भी,उसके अक्स का ही बसेरा रहता है
 जाने कैसे लोग चैन से सो जाते हैं ?


मेरी अमावस रातो में भी,रोशन अँधेरा रहता हैं..
जाने क्यों लोग चिरागों की लौ जलाते हैं?
मेरे साथ न होके भी,वो साथ हमेशा रहता हैं,
जाने कैसे लोग फासलों में दिन बिताते हैं..







Monday, 2 April 2012

एक और ख्वाब...



एक और ख्वाब ,आज फिर देख लूं
बरसती खुशियाँ ,इन बाहों में समेट लूं
साथ न होके,कैसे कोई साथ हो जाता हैं?
वो कहे तो फिर से ,मैं जीना सीख लूं..


एक और ख्वाब ,आज फिर देख लूं..
बिखरती हसी,इन लबों में भर लूं..
अजनबी होके,कैसे कोई ख़ास हो जाता हैं?
वो कहे तो फिर से ,मैं जीना सीख लूं..


ख्याल नहीं गया...


उससे मिलने की ख्वाइश में जागती ये आंखें,
रैना बीत गयी ....वो ख्याल नहीं गया....
वो वक़्त बनकर मेरे सामने से गुजरा..

पर उसका सवाल नहीं गया..
दो राहों में खड़ी एक मुकाम चाहती हूँ,

यादों का बीता जंजाल नहीं गया..
इस सुबह में फिर उसकी झलक सी है..

 रैना बीत गयी पर .....वो ख्याल नहीं गया....


बदसुलूकी