Tuesday, 21 June 2011

अनकही उलझन ..1



"मैंने उसे सपनों में देखा है,तो  फिर  उस शख्स  जैसा  अभी  तक  कोई मुझे क्यूँ नहीं मिला?
क्या सपनो का हकीकत से कोई सम्बन्ध नहीं हैं.

कभी वो मुझे मेरी कहानियों में दिखाई देता है ,तो कभी कई अनकहे सवालों में ..
क्या पता शायद वो वही है जिसे मैं जानती नहीं हूँ... "


"बाकी बातें बाद मैं करुँगी तुमसे,अभी देरी हो गयी है मुझे."
 जल्दी बाज़ी में ,मैं निकल तो गयी,पर मेरी माँ रोज की तरह मुझे यह कहते हुए कॉलेज  के लिए बिदा कर रही है की " ना जाने सुबह- सुबह किससे बतियाती रहती है ??" पर माँ सब कुछ समझती है !!!


और आदत अनुसार पापा ने कहा, "छोटी ,तेरी बस छूट जाएगी.."

मन में मुस्कुराकर मैं फिर घर से निकल गयी.ये सोचते हुए की आज का दिन अच्छा जाने वाला है या बहुत बुरा,शाम को में घर किस सोच,किस परेशानी के साथ लौटूंगी,एक पल को मेरा मन ,दिल खाली नहीं होता, शायद इसलिए मुझे किसी से शिकायत नहीं है,खुद से फुर्सत मिले तब तो किसी के बारे में सोचू मैं.



कभी- कभी तो मुझे खुद पता नहीं चलता की मेरे आस पास हो क्या रहा हैं?
बहुत अच्छा लगता है अपनी ही दुनिया,सपनों में खोया सा रहना,और कभी इन्ही सपनो से डर सा लगता है.


मेरी माँ कहती है ,ज्यादा नहीं सोचना चाहिए,पर मैं ज्यादा सोचती हूँ,सोच को रोकना मुझे नहीं आता.


पर लोगों को मुझे  अपनी सोच से रूबरू भी नहीं कराना आता ,जो,जो सोचता है सोचे मुझे फरक नहीं पड़ता,कौन क्या कहता है ,क्या करता है,सबके अपने उसूल है,सब अपनी तरह जीए तो अच्छा है.


जैसे मैं, मेरी तरह ही हूँ,और मुझे अच्छा लगता है इस तरह रहना !!!!



घर से मैं कितनी सारी सोच लेके निकलती हूँ,और कॉलेज आते -आते,कुछ बातें पीछे छूट जाती हैं,जिनका छूटना मुझे अच्छा सा लगता हैं.
पर एक चीज है जो मुझसे कभी अलग नहीं होती,एक एहसास किसी का..
जो मुझसे कहीं दूर तो हैं,पर हमेशा मेरे साथ रहता हैं.
मैं नहीं जानती वो कौन हैं?

कभी ना कभी ज़िन्दगी,उससे भी सामना करवा ही देगी ..


अरे !! देखा मैं कॉलेज पहुंचते  -पहुंचते कहा पहुच गयी ?ये रोज़ की नहीं,सदियों और सालों की बात हैं," की मैं न मैं ही हूँ,और कभी नहीं सुधरने वाली,ऐसा मैं नहीं सब कहते हैं."  मैं  सबकी बात से सहमत हूँ.


शाम को घर आते ही मुरझा से जाते हैं,और कभी अगर अच्छे मन से वापस आये तो,थकने के बाद भी धूम मचा देते हैं ,सब फिर मेरे सो जाने का इंतज़ार करते है ताकि सब शान्ति के साथ  उनके वो सड़े हुए TV serial  देख पाए..:-(
उनकी मनोकामना  god कभी-कभी  सुन लेता है,और मैं अपने सेल फ़ोन से खेलते -खेलते सो जाती हूँ..





और जब नींद नहीं आती तो अपनी secret  diary  के साथ कुछ time  spent  करना अच्छा लगता हैं ..और आज मैंने कुछ पुराने पन्ने ही  पलटने  शुरू कर दिए..


कितने पुराने वो चुके है उसके पन्ने ,उसमे रखे फूलों से खुशबू आ रही है,उसे खोलते ही पुराने बीते दिनों की कुछ यादे ताज़ा सी हो गयी,जैसे सब कुछ मेरे सामने था
"ओह !! ये क्या लिखा है मैंने !!!" हँसी आती हैं अब पढके,यु तो मुझे बिलकुल  भी पसंद नहीं था ,अपनी रोज के बीतें दिनों के बारे में कुछ भी लिखना पर जो मैंने लिखा था,उसको पढ़कर  वाकई
हँसी आ रही थी.

 लो अब ये ट्रिंग- ट्रिंग फ़ोन की,जब भी मैं खुद से बात करने की कोशिश करती हूँ  ,कुछ न कुछ जरूर होता हैं.

मेरी माँ भी बोलने लगी ," उठा क्यों नहीं लेती फ़ोन?कबसे बज रहा हैं?क्या करती रहती है?"
 

अब उन्हें क्या बताये की क्या करते और सोचते रहते है?शेतानी दिमाक एक जगह रहना ही नहीं चाहता..

फ़ोन तो उठा लिया,पर कुछ समझ में तो आ ही नहीं रहा था, अब भला बताओ  हम किसी और दुनिया में है तो किसी की बात कैसे पल्ले पड़ेगी?

और अगर हम अपनी दुनिया में हो तब भी एक परेशानी ही है,फिर तो मन करता है सबसे ढेर सारी बातें कर डाले,बातें -किस्से ही ख़तम नहीं होते हमारे,फिर चाहे वो कोई भी हो...


 ""फिर रास्ते मिलेंगे,
फिर मंजिल बुलाएगी हमे,
कभी हमसे,फिर रूबरू करवाएगी तुम्हे..
तुम कौन हो..
हम कौन है...
दोनों को ही है उलझन..
ये अनकही उलझाने ,एक दिन समझ में आयेगी हमे.









बदसुलूकी